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________________ ४० अप्पाणं सरणं गच्छामि प्रयत्न करें; फिर भी उसका मन स्थिर हो नहीं सकता क्योंकि उन वाक्-प्रहारों से भीतरी चंचलता बहुत बढ़ जाती है। चंचलता का सारा समुद्र हिलोरें लेने लगता है। विकल्पों का ज्वार आता है और मन उस प्रवाह में बह जाता है। चंचलता को पैदा करने वाली है-कषाय आत्मा।हम उसको देखें। चंचलता को देखने के बाद हम चंचलता पैदा करने वाली आत्मा को देखें। जब कषाय आत्मा विद्यमान होती है तब योग आत्मा का अस्तित्व बना रहता है। जब कषाय आत्मा समाप्त हो जाती है तब योग आत्मा का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। चंचलता अपने आप नहीं चल सकती। उसे सहारा चाहिए। वह वैशाखी के सहारे ही चल पाती है। चंचलता को टिकाने वाली है कषाय आत्मा। हमारी चंचलता के पीछे अनेक चेतनाएं काम करती हैं। एक है क्रोध की चेतना, एक है माया और अभिमान की चेतना, एक है लोभ और भय की चेतना। ये चेतनाएं चंचलता को बढ़ाती हैं। भय की चेतना से चंचलता के बढ़ने का हम सबको अनुभव है। आदमी शांत और स्थिर है। ज्योंही उसे पता लगता है कि सांप आ गया, उसकी स्थिरता और शांति गायब हो जाती है। उसका सारा यंत्र शरीर चंचलता से भर जाता है। मन अत्यधिक चंचल हो उठता है। भय की चेतना के जागते ही चंचलता जाग जाती है। क्रोध की चेतना के जागते ही आदमी चंचल हो उठता है। उसका मस्तिष्क विकल्पों से इतना आक्रान्त हो जाता है कि वह न शांत बैठ सकता है और न सो सकता है। माया की चेतना का जागरण भी भयंकर होता है। मायावी आदमी अपने माया के जाल को बिछाने में इतना चंचल होता है कि दूसरी चंचलताएं उसके सामने नगण्य-सी लगती हैं। एक माया को छिपाने के लिए हजारों मायाजाल बुनने पड़ते हैं। क्षण-क्षण चंचलता में ही बीतता है। लोभ की चेतना भी चंचलता की जननी है। इस चंचलता का अन्त सहज नहीं होता। हम आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने की प्रक्रिया में उस मूल सचाई का अनुभव करें जो चंचलता को पैदा करती है। जब तक इस सचाई का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक स्थिरता को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। कषाय चेतना को देखना-जानना ही स्थिरता को उपलब्ध करना है। राजस्थानी में एक कहावत है-'छाछ मांगने आयी और घर की मालकिन बनकर बैठ गई।' इन विभिन्न चेतनाओं ने भी ऐसा ही कुछ किया है। ये आत्मा बनकर बैठ गईं। सारी विकृतियां आत्मा बनकर जम गईं। अब इन स्वामिनियों को उखाड़ फेंकना साधारण बात नहीं है। इन्होंने इतना अधिकार जमा लिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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