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________________ ३८ अप्पाणं सरणं गच्छामि के विभिन्न स्तरों को देखें । देखते-देखते साध्य-चेतना तक पहुंच जाएंगे। जब हम देखना शुरू करेंगे तो सबसे पहले हमारे सामने आएगा शरीर । शरीर हमारी आत्मा है। जब तक उसमें प्राण-शक्ति का संचार है, तब तक हम शरीर को सर्वथा अनात्मा नहीं कह सकते। अंगुली इसलिए हिलती है कि वह आत्मा है । क्या शरीर का कोई ऐसा प्रदेश है जहां आत्मा न हो? क्या शरीर का एक भी परमाणु ऐसा है जो आत्मा से भावित न हो? आत्मा है इसलिए आदमी खा रहा है, बोल रहा है, श्वास का स्पंदन हो रहा है । आत्मा के चले जाने पर आदमी न खा सकता है, न बोल सकता है और न श्वास ले सकता है । श्वास आत्मा है । भाषा आत्मा है, आहार आत्मा है और शरीर आत्मा है। आहार एक पर्याप्ति भी हैं और प्राण-शक्ति भी है । शरीर एक पर्याप्ति भी है और प्राण-शक्ति भी है । भाषा एक पर्याप्त है तो एक प्राण-शक्ति भी है। मन एक पौद्गलिक शक्ति है तो वह एक प्राण-शक्ति भी है। हम पुद्गल और आत्मा को बांट नहीं सकते । चंचलता कितनी ? I हम चित्त को साधन बनाकर देखना प्रारंभ करें। सबसे पहले आएगा योग आत्मा । इसका अर्थ है- चंचलता । आत्मा के दो लक्षण हैं- चंचलता और स्थिरता । चंचलता के दो प्रकार हैं- एक है स्वाभाविक चंचलता और एक है कृत्रिम चंचलता । सबसे पहले शरीर की चंचलता, श्वास, वाणी और मन की चंचलता आएगी । उसे हम देखें। चंचलता को देखने का प्रयास करें । आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का मतलब है भीतर में होने वाली चंचलता को देखना । चंचलता को देखने का अर्थ है अपने आपको देखना । चंचलता को जानने का अर्थ है अपने आपको जानना । जो अपनी चंचलता को नहीं देखता - जानता, वह अपने आपको नहीं देखता - जानता । चंचलता को देखे-जाने बिना हम अपने आपको कैसे जान पाएंगे? यदि कोई मानकर बैठ जाए कि वह तो शुद्ध, बुद्ध, स्थिर और कूटस्थ है, उसे फिर साधना करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । उसे आत्मा को देखने-जानने की जरूरत नहीं है। यदि मैं शुद्ध हूं, बुद्ध हूं, निरंजन और निराकार हूं, पवित्र और निर्लेप हूं, कूटस्थ नित्य हूं तो फिर मुझे धार्मिक उपासना करने की क्या जरूरत है ? फिर मैं ध्यान या उपासना में अपना समय क्यों लगाऊं ? कोई जरूरत नहीं है । जो स्वर्ण शुद्ध हो चुका है उसे फिर तपाने या गलाने की क्या आवश्यकता है? अशुद्ध स्वर्ण को तपाने और गलाने की जरूरत होती है, जिससे उसकी अशुद्धि मिट जाए। पर जो स्वयं शुद्ध है उसे शुद्ध क्या किया जाए ? जब हम आत्मा के द्वारा आत्मा को देखते हैं तब हमें पता चलता है कि हमारे भीतर कितनी चंचलता है । जो व्यक्ति ध्यान नहीं करता, एकाग्र नहीं होता, उसे चंचलता का ज्ञान नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं-हम जब दुकान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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