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क्या आदतें बदली जा सकती हैं? ३३
ध्यान में अग्रसर हो । ध्यान साधक के सामने इतना विशाल क्षेत्र है कि कोई उसका साथी हो या न हो, वह अनन्त जन्मों तक सत्य की खोज में जुटा रह सकता है।
आर. एन. ए. रसायन
ध्यान रूपान्तरण की प्रक्रिया है। उससे आदतें बदलती हैं, स्वभाव बदलता है और पूरा व्यक्तित्व बदल जाता है। इस रूपान्तरण की वैज्ञानिक व्याख्या की जा सकती है। आज का विज्ञान भी इस बात को समर्थित करने लगा है कि आदमी का रूपान्तरण हो सकता है । विज्ञान के अनुसार हमारे मस्तिष्क में आर. एन. ए. नामक रसायन होता है, जो हमारी चेतना की परतों पर छाया रहता है । विज्ञान ने यह खोज निकाला है कि यह रसायन व्यक्तित्व के रूपान्तरण का घटक है । इसे घटाया बढ़ाया जा सकता है। इसके आधार पर ही रूपान्तरण घटित होता है। आदतें बदलती हैं। पुरानी आदतों को छोड़कर नयी आदतें डाली जा सकती हैं । जीवशास्त्री जेम्स ओल्ड्स ने एक प्रयोग किया। उसने चूहों के मस्तिष्क में एक प्रकार की विद्युत् तरगें प्रसारित कीं। कुछ ही समय बाद उनके मन का भय भाग गया। चूहे बिल्ली के सामने निःसंकोच आने-जाने लगे । उनका भय समाप्त हो गया ।
भय को समाप्त करने के लिए साधना की कुछ प्रक्रियाएं भी हैं । उनके द्वारा भी अभय बना जा सकता है। वैज्ञानिक प्रयोगों से भी भय को मिटाया जा सकता है। इस प्रकार साधना से जो फलित होता है वही विज्ञान के प्रयोगों के द्वारा भी फलित हो सकता है। यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है कि विज्ञान जिसको कुछ ही समय में घटित कर दिखाता है, वह साधना के द्वारा लंबे समय के बाद घटित होता है। तो फिर व्यक्ति साधना की लम्बी उपासना में अपनी शक्ति को क्यों खर्च करे? वह आदतों या व्यक्तित्व को बदलने के लिए विज्ञान का ही सहारा क्यों न ले ? यह प्रश्न स्वाभाविक है । तरंगातीत अवस्था : विज्ञान से परे
हमारे शरीर में तीन केन्द्र हैं। एक केन्द्र वह है जहां तरंगें पैदा होती हैं । दूसरा केन्द्र वह है जहां से तरंगें गुजरती हैं। तीसरा केन्द्र वह है जहां तरंगें अभिव्यक्त होती हैं। हमारे शरीर में सारी व्यवस्था है । एक केन्द्र है जहां से क्रोध की तरंग उठती है । वह स्नायुओं से गुजरती है और एक केन्द्र पर आकर प्रकट हो जाती है । एक व्यक्ति को क्रोध आता है तब यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि यह अब क्रोध के वशीभूत है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं । उसकी भृकुटी तन जाती है। होंठ फड़कने लग जाते हैं। अपने आप ज्ञात हो जाता है कि गुस्सा उतर रहा है, आ गया है। यह अभिव्यक्ति ज्ञात हो जाती है । किन्तु क्रोध की तरंगों के गुजरने का पथ ज्ञात नहीं होता। उसे हर व्यक्ति
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