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________________ क्या कर्म अनासक्त हो सकता है? २५ जहां वृत्ति का शोधन नहीं होगा, वहां निश्चित ही प्रवृत्ति पुनरावृत्ति की मांग करेगी। इससे कर्म का जाल विस्तृत होता जाता है। सचमुच वृत्ति के शोधन का सूत्र हमारे हाथ से निकल गया और हाथ में रह गया केवल कर्त्ता से अकर्ता बनने और कर्म से अकर्म फलित करने के सिद्धान्त का कलेवर। आत्मा चली गयी। प्राण उड़ गए। केवल कलेवर को लेकर हम घूम रहे हैं। यदि मूल प्राण, मूल सूत्र हमारे हाथ में होता तो अकर्म या अकर्ता होने की बात अवश्य ही फलित होती। कर्म : सबसे बड़ा संकट ____ आज के संसार का सबसे बड़ा संकट है-कर्म । कर्म अर्थात् प्रवृत्ति। आज प्रवृत्तियों की इतनी प्रचुरता है कि आदमी क्षण-भर के लिए भी अकर्म नहीं रह सकता। इस प्रवृत्ति-बहुलता ने आदमी को अणु-अस्त्रों के निर्माण तक पहुंचा दिया। एक प्रवृत्ति को पूरा करने के लिए दूसरी प्रवृत्ति और दूसरी को पूरा करने के लिए तीसरी प्रवृत्ति अपेक्षित हो गयी। इस चक्र का कहीं अन्त नहीं है। तर्कशास्त्र के अनुसार प्रवृत्ति अनवस्था दोष से ग्रसित हो गयी है। कहीं रुकावट नहीं है, व्यवस्था नहीं है। यह अनन्तता है। यह प्रवृत्ति-बहुलता सबसे बड़ा संकट है। जब तक सक्रियता के साथ-साथ निष्क्रियता की बात समझ में नहीं आएगी, जब तक प्रवृत्ति के साथ-साथ निवृत्ति का संतुलन नहीं होगा, तब तक यह संसार इस संकट से उबर नहीं पाएगा। निश्चित ही इस दुनिया को इन प्रवृत्तियों के दुश्चक्र से, आणविक अस्त्रों के विस्फोट से उत्पन्न अमावस की काली रात देखनी होगी। ___ डॉक्टर रोगी को कहता है विश्राम करो। क्या यह कर्म से अकर्म की ओर जाने की सूचना नहीं है? जब शरीर, मस्तिष्क और हमारी ग्रन्थियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं तब आदमी पागल हो जाता है। आदमी को स्वस्थ रहने के लिए मस्तिष्क को विश्राम देना जरूरी है। नेपोलियन बोनापार्ट 'वाटरलू' की लड़ाई में हार गया। क्यों हारा-यह सब नहीं जानते। कहा जाता है कि उसने सही समय पर सही निर्णय नहीं लिया। सही निर्णय नहीं ले सका, इसका भी एक कारण था। उसकी पिच्यूटरी ग्लैण्ड खराब हो गयी थी। उसका रसस्राव अनियमित हो गया था, इसलिए वह सही निर्णय नहीं ले सका। आदमी की जब ग्रंथियां विकृत हो जाती हैं तब चिन्तन, मनन, निर्णय आदि में भी विकार आ जाता है। उचित समय पर उचित निर्णय लेने, सही बात कहने, उचित कार्य करने आदि में गड़बड़ी हो जाती है और अकल्पित घटनाएं घटित हो जाती हैं। क्रिया-अक्रिया का संतुलन अति-सक्रियता और अति-प्रवृत्ति के कारण आज इतनी भयंकर स्थिति उत्पन्न हो गयी है कि सारा संसार महासंकट के कगार पर खड़ा है। किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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