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२४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
सुन्दर समाधान दिया जो योगवाशिष्ठकार की बात की ही पुष्टि करता है। उस कवि ने एक श्लोक कहा
निद्राप्रियो यः खलु कुम्भकर्णः, हतः समीके स रघुत्तमेन।
वैधव्यमापद्यत तस्य कान्ता, श्रोतुं समायाति कथापुराणम्।।
नींद का पति था कुम्भकर्ण। राम-रावण के युद्ध में वह मारा गया। नींद बेचारी विधवा हो गयी। विधवा के लिए धर्म-कथा को सुनने के सिवाय कोई काम नहीं रहता। वह बेचारी जहां कहीं धर्म-कथा होती है वहां आकर सबके आगे बैठ जाती है। इसीलिए धर्म-श्रवण में लोगों को नींद सताती है, मन भटकता
जैसे धर्म-कथा सुनने वाला श्रोता अश्रोता बन जाता है, वैसे ही जिस व्यक्ति के चित्त में वासना क्षीण हो चुकी है वह कर्ता भी अकर्ता बन जाता है। अकर्ता होने का दिग्भ्रम __ आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आदमी अपनी वासनाओं को क्षीण करना नहीं चाहता, परन्तु अकर्ता बनने के लिए सतत लालायित रहता है। कर्म से अकर्म बनता है और कर्त्ता से अकर्ता बनता है-इस सूत्र को मानने वाले लोग बहुत दिग्भ्रान्त हो रहे हैं। वे वासनाओं को क्षीण करने का तनिक भी प्रयत्न नहीं करते और कर्ता से अकर्ता बनने का दंभ भरते हैं। वे कहते हैं-- 'मैं तो केवल कर्म करता हूं, उसमें मेरा कर्तृभाव नहीं है। करोड़ों रुपयों की संपत्ति अर्जित कर ली, फिर भी कहेगा-मेरा कोई कर्तृभाव नहीं है। मैं तो मात्र कर्तव्यदृष्टि से या किसी अज्ञात प्रेरणा से कार्य कर रहा हूं' यह बहुत बड़ा दिग्भ्रम है। कर्म अकर्म कैसे? ____ कर्ता अकर्ता कैसे बने? कर्म अकर्म कैसे बने? इसकी भूमिका को हम समझें ___ एक क्रम या व्यूह है-वृत्ति-प्रवृत्ति-निवृत्ति। इसका प्रतिपक्षी क्रम है-वृत्ति का शोधन-प्रवृत्ति-निवृत्ति। प्रवृत्ति दोनों क्रमों में है। वह दोनों के मध्य है। वृत्ति के बाद भी प्रवृत्ति होगी और वृत्ति के शोधन के बाद भी प्रवृत्ति होगी। किन्तु जहां वृत्ति का शोधन हो गया, वहां प्रवृत्ति होगी और बाद में वास्तविक निवृत्ति होगी, पुनरावृत्ति नहीं होगी, कोई उलझन नहीं होगी। वृत्ति का शोधन हुए बिना आवृत्ति मिटती नहीं। किसी व्यक्ति ने एक दिन एक स्वादिष्ट पदार्थ खाया। दूसरे दिन थाली में यदि वह पदार्थ नहीं आता है तो उसकी स्मृति सताने लग जाती है। पुनरावृत्ति की अपेक्षा होती है। किन्तु जिस व्यक्ति ने शोधन कर लिया, उसको पुनरावृत्ति की अपेक्षा नहीं होती। उसको उस पदार्थ की स्मृति नहीं सताएगी। प्रवृत्ति पुनरावृत्ति की मांग नहीं करेगी।
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