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३३६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
__बाह्य परिस्थितियों के आधार पर सारी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ना एक अंधेरे से दूसरे अंधेरे में भटकना है। इससे समाधान प्राप्त नहीं होता, भ्रांतियां प्राप्त होती हैं। परिस्थिति भी एक सचाई है। इसे हम अस्वीकार न करें, किन्तु वही सब कुछ है, यह कभी न मानें। हमारी आन्तरिक शक्ति बहुत प्रबल है। उसके समक्ष परिस्थिति की शक्ति नगण्य है, तुच्छ है। अन्तर क्यों?
हम सड़क के जीवन को भी समझें और मकान के जीवन को भी समझें। दोनों को सामने रखकर समस्याओं का समाधान ढूंढ़ें। एक व्यक्ति सामान्य अप्रिय बात को सुनकर तमतमा उठता है। दूसरा व्यक्ति कठोर अप्रिय वचन सुनकर भी शान्त रहता है। यह अन्तर क्यों? दोनों के समक्ष अप्रियता की परिस्थिति है। दोनों के समक्ष क्रोध करने के निमित्त हैं, किन्तु एक गुस्से से लाल हो जाता है और दूसरा शान्त रहता है। यह क्यों? इसका कारण स्पष्ट है। जिस व्यक्ति ने अपने आन्तरिक भावों का परिमार्जन कर लिया वह अप्रिय बात सुनकर भी उत्तेजित नहीं होता और जिस व्यक्ति ने अपने अन्तर्-मन का शोधन नहीं किया, वह थोड़ी-सी अप्रिय परिस्थिति में उत्तेजित हो जाता है। बाह्य परिस्थिति तब तक आदमी को प्रभावित नहीं कर सकती, जब तक उसके साथ भीतर की परिस्थिति या भाव न जुड़ जाए। शास्त्र भार भी, दीप भी
विद्वान लोग एक ही शास्त्र के अनेक अर्थ करते हैं। दो व्यक्ति एक ही शास्त्र को पढ़ते हैं। पर अर्थ-ग्रहण दोनों का भिन्न हो सकता है। दोनों में बहुत बड़ा अन्तर हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? 'भारोऽविवेकिनः शास्त्रम्'-जिसका अन्तर्विवेक जागृत नहीं होता उसके लिए शास्त्र भार बन जाता है। जिसका अन्तर्विवेक जागृत होता है उसके लिए शास्त्र मार्गदर्शक होता है। जिसका अन्तश्चक्षु जागृत नहीं है, उसके लिए शास्त्र अन्धकार बन जाता है और जिसका अन्तश्चक्षु जागृत है, उसके लिए शास्त्र दीप बन जाता है।
एक व्यक्ति काशी गया। वहां बारह वर्षों तक पढ़ता रहा। पंडित होकर वहां से गांव आया। गांव के बाहर श्मशान भूमि थी। वहां एक गधा खड़ा था। उसे याद आया शास्त्र का एक वाक्य-'राजद्वारे श्मशाने च, यस्तिष्ठति स बान्धव! -जो राजद्वार और श्मशान में रहता है वह भाई है, बन्धु है। उसने सोचा-गधा मेरा भाई है। वह गया। गधे को गले लगाया। गधे ने दुलत्ती मारी। वह गिर पड़ा। इतने में देखा कि एक ऊंट दौड़ा आ रहा है। उसे शास्त्र का वाक्य याद आ गया-धर्मस्य त्वरिता गतिः-जो तेज दौड़ता है वह धर्म है। वह धर्म को, जो ऊंट था, पकड़ने दौड़ा। पूंछ पकड़ पाया। ऊंट और तेज हो गया। वह पूंछ पकड़े ऊंट के पीछे घसीटा जा रहा था। लहूलुहान हो गया।
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