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________________ आन्तरिक समस्याएं और तनाव ३३५ मनुष्य की व्याख्या-परिस्थिति? एक चिन्तन आता है कि मनुष्य परिस्थिति का दास है। वह बेचारा क्या करे? परिस्थिति व्यक्ति को प्रभावित करती है। ऐसा एक भी मनुष्य नहीं मिलता जो अनुकूल परिस्थिति में प्रसन्न और प्रतिकूल परिस्थिति में विषादग्रस्त न होता हो। परिस्थिति को छोड़कर मनुष्य की कोई व्याख्या नहीं की जा सकती। मनुष्य के सारे सुख-दुःख और संवेदन परिस्थिति के संदर्भ में ही व्याख्यातित होते हैं। यह एक ऐसा तर्क है जो काटा नहीं जा सकता। यह भी भ्रान्ति है। तर्क हो और काटा न जा सके, यह असंभव है। तर्क अकाट्य होता ही नहीं। तर्क का प्रयोग काटने के लिए ही होता है। जो तर्क पहले के तर्क को काट सकता है तो दूसरा तर्क उसे क्यों नहीं काट सकेगा? तर्क की प्रकृति ही है-काटना। जब यह तर्क का स्वभाव है तब हम इसे अन्यथा कैसे कर सकते हैं? सबल तर्क दुर्बल तर्क को काट देता है। फिर जो उससे भी प्रबल तर्क आता है तो वह उस सबल तर्क को भी काट देता है। उससे भी प्रबल तर्क हो सकता है जो उसे भी काट देता है। यह चलता रहता है। इसका कहीं अन्त नहीं आता। प्रथम दर्शन में लगता है कि परिस्थिति को समर्थन देने वाला तर्क प्रबल है, अकाट्य है, पर यथार्थ में वैसा नहीं है। हम देखते हैं कि समान परिस्थिति में जीने वाले दो मनुष्य दो प्रकार का जीवन जीते हैं। एक परिस्थिति से पराजित होकर घुटने टेक देता है और दूसरा उस परिस्थिति के सामने डटकर खड़ा हो जाता है। दोनों गरीबी से आक्रांत हैं, फिर भी एक गरीबी से संत्रस्त होकर दुःखी जीवन जीता है और दूसरा गरीबी के जीवन के साथ संग्राम करता हुआ उससे जूझता चला जाता है। वह मानता है-जीवन एक संग्राम है। जो उससे निरंतर लड़ता जाता है, वह एक दिन न एक उस पर नियंत्रण पा लेता है। अब हम सोचें, दोनों व्यक्तियों के सामने समान परिस्थिति है। कोई अन्तर नहीं है। दोनों अभावग्रस्त हैं। किन्तु एक व्यक्ति परिस्थिति से दब जाता है और दूसरा व्यक्ति उस पर हावी हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? यदि हम गहराई से सोचें तो इस अन्तर का कारण बाह्य जगत् में नहीं मिल सकता, क्योंकि दोनों के लिए बाहर का वातावरण समान है। यह अन्तर भीतर में खोजा जा सकता है। दोनों का भीतरी जगत् समान नहीं हैं, इसलिए यह अन्तर है। एक व्यक्ति का आन्तरिक जगत् बहुत कमजोर है और दूसरे व्यक्ति का आन्तरिक जगत् बहुत शक्तिशाली है। जिसकी प्राण-ऊर्जा सबल होती है उसका आन्तरिक जगत बहुत शक्तिशाली होता है और वह परिस्थिति पर हावी होकर उसको कुचल डालने में समर्थ होता है। जिसकी प्राण-शक्ति कमजोर होती है, वह परिस्थिति से दब जाता है। परिस्थिति उसे कुचल डालती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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