SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आन्तरिक समस्याएं और तनाव ३३७ ऊंट रुका। उसे फिर याद आया-इष्टं धर्मेन योजयेत्-बन्धु को धर्म के साथ जोड़ना चाहिए। गधा खड़ा था। वह बन्धु था। उसने गधे को लाकर ऊंट के साथ एक ही रस्सी से बांध डाला। मन ही मन प्रसन्न हुआ कि आज मैंने शास्त्र के वाक्यों का क्रियात्मक रूप में पालन किया है। वहां से कुछ आगे बढ़ा। चार मित्र तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उनके साथ चल पड़ा। स्नान करते-करते एक मित्र डूबने लगा। उस नये पंडित को शास्त्र का वाक्य याद हो गया-'सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्थ रक्षति पंडित!-जहां सर्वनाश होता हो वहां पंडित को चाहिए कि वह कम से कम आधे की रक्षा अवश्य करे। उसने चाकू निकाला और डूबने वाले का सिर काट डाला। उसने आधे की रक्षा कर ली। वह व्यक्ति शास्त्र के आदेशों को मानकर कार्य कर रहा था। कवि ने उचित ही कहा-'भारोऽविवेकिनः शास्त्रम्-जिस व्यक्ति का विवेक-चक्षु खुला हुआ नहीं है, उसके लिए शास्त्र भार है। वह तारने वाला भी डुबाने वाला बन जाता है। जिसका विवेक जागृत है, उसके लिए शास्त्र बहुत उपयोगी है। शास्त्र बाहरी वस्तु है। उसकी उपयोगिता तभी होती है जब विवेक का जागरण हो, मन प्रबुद्ध हो। आन्तरिक समस्याओं को सुलझाए बिना शास्त्र शस्त्र बन जाता है। वह कल्याण नहीं कर सकता। 'भारो ज्ञानं च रागिणाम् -जो व्यक्ति राग से ग्रस्त है, उसका ज्ञान भार बन जाता है। जो ज्ञान का भार ढोते हैं, वे बड़े अहंकारी बन जाते हैं। पंडित जितना अहंकारी होता है उतना अ-पंडित नहीं होता। वह बेचारा किस वस्तु का अहं करे। बड़ा आश्चर्य है कि ज्ञान वास्तव में अहंकार को मिटाने वाला है, किन्तु वही अहं को बढ़ाता है। पढ़े-लिखे लोग अहंकारी बन जाते हैं तो क्या पढ़ना अहंकार को बढ़ाना है? नहीं, वह तो अहं को मिटाने वाला है। व्यक्ति में अहं पैदा होता है अपने आन्तरिक कारणों से। हमारे भीतर के स्रावों के कारण ये सारी वृत्तियां जागती हैं और व्यक्ति कभी अहंकार से, कभी क्रोध से, कभी माया से और कभी उत्तेजना से ग्रस्त हो जाता है। यह सारा आन्तरिक कारणों से होता है। हमें लगता है कि बाहरी निमित्त ही इन सब वृत्तियों के कारण हैं, किन्तु इन वृत्तियों का मूल कारण ग्रन्थियों का स्राव है। विद्युत्प्रवाह के रूपान्तरण ___ वैज्ञानिकों ने कुछ प्रयोग किए। उन्होंने बिल्ली के संवेदन-केन्द्रों पर इलेक्ट्रोड लगा दिए और उनमें से विशेष प्रकार का विद्युत-प्रवाह प्रवाहित किया। बिल्ली के वे केन्द्र निष्क्रिय हो गए। अब चूहे आते हैं। बिल्ली के सिर पर चढ़ते हैं, कूदते हैं, फांदते हैं। बिल्ली शान्त बैठी रहती है। न क्रोध आता है और न आक्रमण की भावना होती है। विद्युत्-प्रवाह के इस परिवर्तन से आश्चर्यकारी रूपान्तरण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy