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________________ ३२२ अप्पाणं सरणं गच्छामि व्यक्ति का अर्थ जीवन का दूसरा पक्ष है - व्यक्ति का जीवन । व्यक्ति का अर्थ है - सिकुड़ना, संकुचन, अनुसरण की समाप्ति, दूसरों को न देखना, स्वयं को देखना, अपना विश्लेषण, अपनी खोज, अपना चिन्तन, अपनी समस्या और समाधान । ध्यान का सूत्र है - व्यक्ति और ज्ञान का सूत्र है - समाज । ज्ञान और ध्यान में बहुत बड़ा अन्तर है। ज्ञान समाज के आधार पर चलता है और ध्यान व्यक्ति के आधार पर चलता है। चेतना के दो स्तर हैं - चल और स्थिर । जो चेतना चल है वह ज्ञान कहलाती है और जो चेतना स्थिर है वह ध्यान कहलाती है। ज्ञान और ध्यान दो नहीं हैं । इतना ही अन्तर है कि जो ज्ञान चंचल है वह ज्ञान कहलाता है और जो ज्ञान स्थिर है वह ध्यान कहलाता है व्यक्ति और समाज भी दो नहीं हैं। जहां व्यक्ति दूसरों को देखता है वह व्यक्ति समाज है और जहां व्यक्ति अपने आपको देखता है वह समाज व्यक्ति है । सत्य- शरण की इयत्ता इसलिए जो समाज की शरण में जाता है वह सत्य की शरण में नहीं जा सकता । सत्य की शरण में जाने के लिए व्यक्ति को व्यक्ति रहना जरूरी है, संपर्कों को तोड़ना जरूरी है और सारे संबंधों को काटना जरूरी है । महावीर ने कहा कि परिवार तुम्हें त्राण नहीं दे सकता, तुम परिवार को त्राण नहीं दे सकते। यह समाज तोड़ने की बात नहीं है, यह अपने अस्तित्व के साथ जुड़े हुए विराट् सत्य को देखने का सूत्र है । समाज का सूत्र : परस्परोपग्रह व्यक्ति में एक भय है । वह सोचता है-यदि अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान होगा तो व्यक्ति रहेगा, समाज टूट जाएगा, व्यवहार समाप्त हो जाएगा और तब व्यक्ति अव्यावहारिक और अनुपयोगी बन जाएगा । यह काल्पनिक भय है । इस भय के कारण आदमी ने बहुत सचाइयों को नकार दिया और एक-एक कर अनेक सचाइयों का गला घोंट दिया। क्या सत्य के कारण समाज टूटता है ? क्या कभी यह संभव है? सचाई तो यह है कि सत्य के आधार पर समाज और अच्छे रूप में चल सकता है । किन्तु व्यक्ति ने विपरीत मान लिया कि सत्य से समाज टूटता है, सत्य से परिवार टूटता है । सत्य से व्यक्ति अकेला और अव्यावहारिक बन जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि वही समाज चल या टिक सकता है जो असत्यों को आश्रय देता है, उन्हें पालता है, उनका पोषण करता है। यह गलत धारणा है। समाज का मूल आधार है - सत्य । समाज का विकास होता है अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य के आधार पर। समाज का विकास www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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