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________________ अप्पाणं सरणं गच्छामि ३२१ है। अनुकरण ही फैशन का दृढ़ आधार है। प्रत्येक व्यक्ति अनुकरण-प्रिय होता है। वह अपना स्वतंत्र जीवन नहीं जीता। वह सदा दूसरों को देखकर अपना जीवन चलाता है। समाज के संदर्भ में जीने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हो सकता जिसके लिए अपना थर्मामीटर, अपना तराजू या अपना कोई मानदंड हो। थर्मामीटर, तराजू और मानदंड सदा दूसरे का रहेगा। व्यक्ति वही आचरण करना चाहता है जो समाज के अधिकांश लोग करते हैं। यह बहुमत का राज्य ___ एक पागल था। वह पागलखाने में भरती हो गया। कुछ लोग उसे देखने गए। बातचीत की तो ज्ञात हुआ बहुत बड़ा विद्वान् है, समझदार है। उससे पूछा-भाई! तुम यहां कैसे आ गए? उसने कहा-क्या करूं, मेरे गांव में सब लोग पागल थे। एक मैं ही समझदार था तो गांववालों ने सोचा-यदि यह बाहर रहेगा तो अच्छा नहीं है, उन्होंने मुझे यहा भेज दिया। यहां सब अनुकरण होता है। बहुमत चलता है। यदि बहुमत पागलों का होता है तो समझदार को भी पागल करार दे दिया जाता है और बहुमत यदि चोरों का होता है तो एक ईमानदार को चोर बना दिया जाता है। यह बहुत ही कम संभव है कि जहां हजारों-हजारों लोग बेईमानी और अप्रामाणिकता का जीवन जीते हों, वहां कोई दो-चार आदमी ईमानदारी और प्रामाणिकता का जीवन जी सकें। एक भाई ने बताया-वह आसाम गया, नौकरी की तलाश में । एक सेठ ने कहा-'तुम्हें अच्छा वेतन दूंगा। मेरे यहां काम भी हल्का ही है। केवल दो नम्बर के खाते संभालना है। उसने कहा-'मैं अणुव्रती हूं। यह काम नहीं कर सकूँगा।' सेठ ने कहा-'यहां आए ही क्यों? जाओ, घर में मौज करो।' वह दूसरे स्थान पर गया। वहां मिलावट का काम होता था। वहां भी उसे नौकरी नहीं मिली। वह घर चला आया। इसका फलित यह होता है कि जिस समाज में बहुत लोग अप्रामाणिक हों, वहां कुछेक लोग प्रामाणिकता का जीवन जी सकें, यह असंभव बात है। - समाज का सारा काम बहुत के आधार पर चलता है। इसीलिए एक विचारक ने कहा-बहुमत का अर्थ है-नास्तिकता। यह उचित है, क्योंकि जहां बहुमत के आधार पर काम होता है, वहां सत्य नहीं हो सकता। वहां इच्छा का राज होता है, इच्छा चलती है। ___ समाज का सूत्र है-अनुसरण और अनुसरण का अर्थ है-विस्तार । जहां विस्तार है वहां निर्मलता रह नहीं सकती। निर्मलता अन्तर्मुखता में होती है। जहां बहिर्मुखता है, दूसरों को देखने की प्रवृत्ति है वहां प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का निर्धारण दूसरों के आधार पर करता है, वहां सत्य की बात नहीं हो सकती, वहां मात्र अनुसरण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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