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________________ ३२० अप्पाणं सरणं गच्छामि व्यक्ति अपने से हटकर दूसरे के पास चला जाता है वहां खतरे की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यह मैं कहना नहीं चाहता कि आप दूसरों की शरण लें ही नहीं, क्योंकि सामाजिक बंधनों को तोड़ने की बात मैं कैसे कहूं? मैं आपको सर्वथा असहाय, अत्राण और अशरण होने की बात नहीं कह सकता। किन्तु इस सचाई से अवश्य ही अवगत कराना चाहता हूं कि जहां हम शरण समझते हैं वहां शरण होता भी है और नहीं भी होता। अशरण को शरण मान लेने पर बहुत बड़ी भ्रान्ति होती है। महावीर ने कहा-नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा-जिस परिवार को मनुष्य त्राण और शरण मानता है, वह परिवार कभी त्राण और शरण नहीं हो सकता। न तुम उसे त्राण और शरण दे सकते हो और न वह तुम्हें त्राण और शरण दे सकता है। यह सामाजिक संबंधों को तोड़ने जैसी बात लगती है। व्यक्ति क्या? समाज क्या? ___मनुष्य दो आयामों में जीता है। एक है व्यक्ति का आयाम और दूसरा है समाज का आयाम। कोई भी व्यक्ति पूरा व्यक्ति भी नहीं होता और पूरा समाज भी नहीं होता। वह व्यक्ति का जीवन भी जीता है और समाज का जीवन भी जीता है। व्यक्ति का अर्थ है-अन्तर्मुखता और समाज का अर्थ है-बहिर्मुखता। व्यक्ति का अर्थ है-संकोच सिकुड़न और समाज का अर्थ है-फैलाव और विस्तार । व्यक्ति का अर्थ है-संबंधातीत होना और समाज का अर्थ है-सम्बन्धों की परिस्थापना, संबंधों का जीवन। व्यक्ति का अर्थ है-आत्म-निरीक्षण, अपनी समस्याओं का विश्लेषण करना और समाधान खोजना। समाज का अर्थ है-जागतिक समस्याओं का संदर्भ खोजना और उनका समाधान ढूंढ़ना। समाज का सूत्र है अनुकरण ___ जीवन के दो पहलू हैं-अन्तर्मुखता और बहिर्मुखता। हम आंखें बन्द कर अपने भीतर झांकते हैं और आंखें खोलकर दूसरे की ओर झांकते हैं। जहां समाज है वहां अपने आपको देखने की कोई जरूरत नहीं, स्वयं को देखने की बात वहां प्राप्त नहीं होती। वहां हमेशा दूसरों को देखने की बात आती है। समाज का सूत्र है-अनुसरण, अनुकरण। दूसरों के पीछे चलो। जो पैर उठ चुके हैं, जो पदचिह्न अंकित हो चुके हैं, जो मार्ग जम चुके हैं, उन पर चलो। नया मार्ग मत बनाओ। समाज में रहने वाला व्यक्ति अनुकरण करता चला जाता है। वह मकान बनायेगा तो देखेगा कि दूसरे ने कैसा मकान बनाया है। कपड़े बनायेगा तो देखेगा कि दूसरे ने कैसे कपड़े बनाए हैं। वह अपनी सुविधा या असुविधा का विचार नहीं करेगा। वह यही देखेगा कि दूसरों ने कैसे कपड़े बनाए हैं, कैसे पहनते हैं, कब पहनते हैं? फैशन के बदलने और विस्तृत होने का यही आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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