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________________ क्या कर्म अनासक्त हो सकता है? २१ प्रयत्न अर्थवान् है या निरर्थक, पर उसके पुरुषार्थ में कोई कमी नहीं थी । वह घोंसला बनाती है। बच्चे का प्रसव करती है । उसे चुगा-पानी देती है । बड़ा करती है । यह क्रम सतत चलता रहता है । हम कर्म को न देखें। कर्म को देखते हैं तो धारणाएं भ्रांत बनती हैं। हम कर्म के स्रोत को देखें, कर्म के प्रेरक तत्त्व को देखें । हम यह देखें कि कर्म कहां से आ रहा है। कर्म शब्द ने बड़ी भ्रांति पैदा की है। अकर्म शब्द को सुनते ही आदमी सोचता है कि अकर्म का फल है निठल्लापन । अकर्मण्यता से सब कुछ समाप्त हो जाता है । विकास का अवकाश ही नहीं, जो है वह भी नष्ट हो जाता है । एक मरुस्थल का वासी अनार के देश में चला गया। उसे वहां अनार खाने को दी। उसने अनार को उलट-पलटकर देखा । उसका छिलका उतारा । अन्दर बीज ही बीज थे। लाल-लाल बीज । उसने बीजों को निकाल फेंक डाला। हाथ में छिलका मात्र रह गया । वह उसे खाने लगा। मुंह कषैला हो गया । उसने ग्रास को थूकते हुए कहा- 'अरे! यह कैसा फल ! इतना कषैला !' उस आदमी को पता नहीं था कि अनार में कौन-सा अंश खाने का होता है और कौन-सा फेंकने का । सारे बीज निकालने के ही होते हैं - यह मानकर उसने बीजों को फेंक डाला । हाथ लगा केवल छिलका जो कषैला होता ही है । जिस व्यक्ति ने अकर्म का अनुभव नहीं किया, अकर्म के महत्त्व को नहीं जा, वह अकर्म के मीठे बीजों को डालता जाएगा और कर्म के कड़वे छिलकों को खाता जाएगा। मुंह कड़वा होगा, कषैला होगा, पर वह उसे नहीं छोड़ेगा । अकर्म को छोड़कर आज मनुष्य जाति बहुत दरिद्र और शक्तिशून्य बन गई है । जब कर्म की शक्ति का भान नहीं होता तब कर्म की तेजस्विता भी समाप्त हो जाती है । भारत के साधकों ने, आचार्यों ने इस पर बल दिया कि यदि मनुष्य और पशु-जगत् में भेद-रेखा खींचनी है तो कर्म और अकर्म के आधार पर खींची जा सकती है। मनुष्य अकर्म की ओर जा सकता है। पशु अकर्म की ओर नहीं जा सकता। कर्म से अकर्म की ओर जाने में कर्म को छोड़ना नहीं पड़ता, किन्तु कर्म की प्रेरणा का शोधन करना पड़ता है । कर्म का प्रेरक तत्त्व कर्म की प्रेरणा है - वृत्ति । वृत्ति से प्रेरित होकर ही मनुष्य और पशु कर्म करते हैं । वृत्तियां अनेक हैं- आहार की वृत्ति, भय की वृत्ति, काम और परिग्रह की वृत्ति, क्रोध और मान की वृत्ति, माया और लोभ की वृत्ति । इन वृत्तियों से प्रेरित होकर ही प्राणी कर्म करता है । प्रत्येक कर्म के पीछे इनमें से किसी एक या अधिक वृत्तियों की प्रेरणा मिलेगी । वृत्ति से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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