SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. क्या कर्म अनासक्त हो सकता है ? ध्यान साधना करने वाले व्यक्ति आत्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं । वे स्वयं परमात्मा बन सकते हैं। इसकी केवल एक शर्त है कि व्यक्ति कर्म से मुक्त हो, अकर्म बने। जिस उपलब्धि के लिए व्यक्ति हजारों प्रयत्न करता है, वह एक अप्रयत्न से प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति नहीं जानता, वह हजारों-हजारों प्रयत्न करता रहता है, विभिन्न प्रवृत्तियां और कर्म करता रहता है। पर सब कुछ प्रयत्न या कर्म से नहीं मिलता। कुछ ऐसी भी उपलब्धियां हैं जो केवल अप्रयत्न से ही प्राप्त होती हैं । कुछ ऐसा भी तत्त्व है जो कर्म से नहीं, अकर्म से मिलता है । हमने अज्ञानवश यह मान लिया कि जो सिद्धि होगी वह प्रयत्न, प्रवृत्ति या कर्म से ही होगी। हम अप्रयत्न या अकर्म का मूल्य नहीं जानते । कुछ लोग इस बात पर अधिक बल देते हैं कि कर्म होना चाहिए । यदि कर्म को छोड़ दिया गया तो लोग आलसी बन जाएंगे, भूखे मरेंगे। न खेती होगी, न अनाज पैदा होगा । न कुआं होगा और न पानी मिलेगा । सब भूखे-प्यासे मर जाएंगे। न कपड़ा होगा, न मकान होगा। इसलिए कर्म ही श्रेष्ठ है । व्यक्ति इतना कर्म करे कि वह कर्ममय बन जाए। कर्म का कौशल इतना बढ़े कि पदार्थों के उत्पादन की बाढ़ आ जाए और सारा देश पदार्थों से भर जाए । पदार्थ का अभाव रहे ही नहीं । यह एक दृष्टिकोण है। कर्म पर अत्यधिक बल देने वाले अकर्म के मूल्य को भूल जाते हैं या अकर्म के वास्तविक अर्थ को नहीं जानते । क्या कर्म अकर्म हो सकता है? भारतीय दर्शन में इस प्रश्न पर चर्चा की गई कि क्या कर्म को अकर्म बनाया जा सकता है ? काफी गहरा चिन्तन चला। उसका निष्कर्ष यह हुआ कि यदि कर्म को अकर्म न बनाया जा सके तो पशु और मनुष्य में कोई अन्तर नहीं रहेगा । मैंने देखा । एक चिड़िया घोंसला बना रही थी। वह तिनका लाती है, स्थान पर रखते ही वह जमीन पर आ गिरता है । वह पुनः उसे उठाती है । पुनः वह नीचे आ गिरता है। यह क्रम चलता रहा। मैंने सोचा - कितना प्रयत्न ! कितना श्रम! शायद आदमी भी इतना प्रयत्न नहीं कर सकता। वह इतना पुरुषार्थी नहीं हो सकता, क्योंकि उसके सामने श्रम की एक रेखा है, श्रम का विभाजन है। चिड़िया में वह नहीं है। सायंकाल तक उसका प्रयत्न चला । पर घोंसला नहीं बना। सारा व्यर्थ । चिड़िया यह विवेक नहीं कर पा रही थी कि उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy