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क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती है? १६
भोजन ही निमित्त नहीं है, और अनेक कारण होते हैं।
सरस या नीरस भोजन की बात गौण है। यह प्रधान तब बनती है जब मस्तिष्क में अल्फा तरंगें नहीं होतीं। जब तक परम आनन्द की अनुभूति नहीं होती तब तक पदार्थगत आनन्द बांधे रखता है। जब मस्तिष्क, मन, चित्त और चेतना- ये आनन्द से भर जाते हैं, फिर चाहे गरिष्ठ भोजन खाया जाए, वेश्या के यहां रहा जाए, मनोमुग्धकारक शब्द सुना जाए तो कोई अन्तर नहीं आता। यह सारा आनन्द उपलब्ध होने पर ही घटित होता है। तब सोने का और धन का मूल्य कम हो जाता है। सत्ता और अधिकार का मूल्य कम हो जाता है। जब मस्तिष्क में अवसाद भरा होता है, जब वह चंचल होता है, तब ये सारे पदार्थ मूल्यवान् लगते हैं, पत्थर भी पारस लगता है। जब मस्तिष्क में आनन्द भरा होता है तब ये सारे बाह्य पदार्थ सारहीन लगते हैं, पारस भी पत्थर से अतिरिक्त नहीं लगता। त्रिगुप्ति की साधना : विसर्जन की साधना
ज्ञान और आचरण की दूरी को मिटाने का एकमात्र उपाय है-आन्तरिक आनन्द की उपलब्धि । आगन्द की उपलब्धि का उपाय है-ध्यान । दूसरे शब्दों में वह उपाय है-कायगुप्ति, वचनगुप्ति और मनोगुप्ति । जिसने इन तीनों गुप्तियों का अभ्यास कर लिया, उसने वह पा लिया जो पाना है। इन तीनों गुप्तियों का अभ्यास विसर्जन का अभ्यास है। यह विसर्जन हमें ज्ञान और आचरण की समरसता में ले जा सकता है। इससे कथनी और करनी, चाह और उपलब्धि की दूरी मिट सकती है।
तीन गुप्तियों की साधना केवल आध्यात्म का ही सूत्र नहीं है, व्यावहारिक जीवन का भी सफल सूत्र है। जो व्यक्ति अपने जीवन में सक्रियता और निष्क्रियता का संतुलन करना नहीं जानता वह सुख या आनन्द का जीवन नहीं जी सकता, फिर चाहे वह धनकुबेर हो, पदार्थों की प्रचुरता में जी रहा हो।
राकफेलर आज के युग का धनाढ्य व्यक्ति था। वह बीमार हुआ। उसे लगा कि मृत्यु सन्निकट है और अब अधिक जी पाना असंभव है। डॉक्टरों ने कहा-यदि तुम व्यापार की व्यस्तता से मुक्त नहीं होओगे तो बिना मौत मारे जाओगे। उसने सुना और समझा। तत्काल वह व्यापार को अपने अधिकारियों को संभलाकर एक वर्ष के लिए एकान्त में चला गया। उसने अपनी आत्मकथा में लिखा-मैंने सब कुछ छोड़कर सब कुछ पा लिया।
जब तक छोड़ा नहीं जाता, विसर्जित नहीं किया जाता, तब तक यथार्थ हाथ नहीं लगता। यथार्थ को पाए बिना इन दूरियों को मिटाया नहीं जा सकता।
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