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१८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
आनन्द की अनुभूति कैसे? उपपात में बैठने वालों को क्या मिला? कैसे मिला? यह प्रश्न है। इसका सहज और वैज्ञानिक समाधान यह है कि जिस महापुरुष के मस्तिष्क में अल्फा तरंगों की मात्रा अधिक होती है, उसके आसपास बैठने वालों में वे तरंगें संप्रेषित होती हैं और वे आनन्द की अनुभूति कराती हैं। आज के वैज्ञानिक आध्यात्मिक तथ्यों की व्याख्या जिस प्रकार कर रहे हैं, लगता है कि वैज्ञानिक, जगत् सचमुच ही अध्यात्म-जगत् को उपकृत कर रहा है। आचार्य तुलसी ने कहा था-'विज्ञान को छोड़कर यदि अध्यात्म को प्रस्तुत किया जाए तो वह ग्राह्य नहीं होता। अध्यात्म की व्याख्या केवल शास्त्रों या उपदेश के आधार पर न करें, उसे वैज्ञानिक धरातल देकर प्रस्तुत करें। कोई भी व्यक्ति तब अध्यात्म का विरोधी नहीं होगा। शरीर, वाणी और मन का विश्राम
हमारी व्यस्तता कम हो। हम विश्राम करना सीखें, जानें। कायोत्सर्ग के द्वारा हम शरीर को विश्राम दें, अन्तर्जल्प, मौन और निर्विचारता के द्वारा हम वाणी को विश्राम दें तथा प्रेक्षा और दर्शन के द्वारा हम मन को विश्राम दें। यदि यह विश्राम घटित होता है तो अपने आप अल्फा तरंगों का संवर्धक प्रारंभ हो जाता है। यह संवर्धन आनन्द की तुष्टि देता है।
आदमी पदार्थों का त्याग करता है, त्याग की भाषा में नहीं, अन्तर्मन से, तो मानना चाहिए कि उसके मस्तिष्क में अल्फा तरंगों का संवर्धन हुआ है। अन्यथा पदार्थ की आसक्ति नहीं मिटती। मुनि स्थूलभद्र वेश्या के घर में रहे। उस वेश्या के घर में जो वेश्या चिर-परिचित थी, जिनके साथ स्थूलभद्र मुनि बनने से पूर्व रह चुके थे। क्या उस वेश्या के साथ रहना और निष्कलंक बने रहना संभव है? सामान्य व्यक्ति इस संभावना की कल्पना भी नहीं कर सकता। पर यह घटना घटी। स्थूलभद्र मुनि उसके घर एक महीना नहीं, चार महीने तक रहे और अपनी सफेद चादर को बेदाग रखा। यह तभी संभव हो सका जबकि स्थूलभद्र का मस्तिष्क अल्फा तरंगों से इतना भर गया कि उसे वेश्या राख के पुंज के अतिरिक्त और कुछ नहीं लगी। स्थूलभद्र काम-विजयी बन गए।
एक व्यक्ति ने आकर हेमचन्द्र से पूछा-भंते! साधु सरस भोजन करते हैं, गरिष्ठ भोजन घर-घर से लेते हैं, फिर वे ब्रह्मचर्य का पालन कैसे कर पाते हैं? गरिष्ठ भोजन से शक्ति बढ़ती है और वह काम-वासना को उत्तेजित करती है। ऐसी स्थिति में ब्रह्मचारी रह पाना क्या कठिन नहीं होता? ___आचार्य ने कहा-भद्र ! सिंह बलवान् प्राणी है। वह हाथी और सूअर के मांस को खाता है, फिर भी वह वर्ष में एक बार रति-क्रीड़ा करता है। कबूतर धान के दाने और कंकर खाकर पेट भरता है, फिर भी वह रात-दिन काम-वासना से संतप्त रहता है। इसका क्या हेतु है? भद्र! ब्रह्मचर्य या अब्रह्मचर्य में केवल
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