________________
क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती है? १७
जाने। विश्राम तब होता है जब स्थूल अवयव ही नहीं, शरीर की एक-एक कोशिका सो सके। यह होता है ध्यान और कायोत्सर्ग से। जो आदमी ध्यान और कायोत्सर्ग करना जानता है उसके हृदय के स्पंदन कम होने लगते हैं, श्वास मन्द होने लगता है। इस स्थिति में हृदय को और श्वासतंत्र को कुछ विश्राम मिलता है। वे क्षण-भर के लिए निष्किय से हो जाते हैं। महावीर ने कहा-सिद्धि का साधन है अक्रिया । क्रिया से सिद्धि नहीं मिलती। सिद्धि की प्राप्ति के पूर्व-क्षण में साधक को अक्रिय होना ही पड़ता है। अक्रिया सक्रियता की जननी
सक्रियता और व्यस्तता मष्तिष्क को बोझिल बनाती है। सिद्धियां दूर चली जाती हैं। व्यवहार का भी सिद्धांत है कि जो आदमी अधिक व्यस्त रहता है, काम में अधिक रस लेता है और सोचता है कि अधिक काम करूं, इसका अर्थ है वह काम कम कर पायेगा। जो काम करने के साथ-साथ विश्राम भी लेता रहता है, वह अधिक काम निष्पन्न कर पाता है। विश्राम नहीं करने वाला जितना काम दस घंटों में करता है उससे अधिक काम बीच-बीच में विश्राम करने वाला दो घंटों में कर लेता है। उसकी कार्य-क्षमता बढ़ जाती है। जब तक विश्राम करने के सिद्धांत को हम हस्तगत नहीं कर लेते, तब तक आनन्द की उपलब्धि का मार्ग भी नहीं मिल सकता। आदमी जब अधिक व्यस्त होता है तब मानसिक विकृतियां बढ़ती हैं। व्यस्तता से रक्त में लेक्टिफ एसिड की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। वह मानसिक अवरोध पैदा करती है। 'बीटा' तरंगें अधिक उत्पन्न होती हैं और वे मानसिक संतुलन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। विश्राम की स्थिति में अल्फा तरंगें पैदा होती हैं। वे ही आनन्द की उत्पत्ति में कारणभूत
हैं।
अल्फा तरंगों से मानसिक उपचार
साधक कहता है-ध्यान में आनन्द आता है। इसका तात्पर्य यही तो है कि जब साधक काया का उत्सर्ग कर देता है, शरीर की एक-एक कोशिका को निष्क्रिय-सा बना देता है, वाणी शांत, श्वास शांत, मन शांत, समूचा कर्म-तंत्र शांत, तो उस विश्राम की सघन स्थिति में मस्तिष्क में अल्फा तरंगों का संवर्धन होता है। वे तरंगें साधक को आनन्दविभोर कर देती हैं। आज के मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बीस प्रतिशत मानसिक रोग ऐसे हैं जिनकी चिकित्सा अल्फा तरंगों के आधार पर ही की जा सकती है। वे मानते हैं कि एक व्यक्ति के मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को यदि दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में संप्रेषित किया जा सके तो रोग का उपचार हो सकता है। यह संभव है। __ आदमी गुरु, योगी, संत व्यक्तियों के उपपात में बैठता है। उसे अपूर्व आनन्द का अनुभव होता है। गुरु या योगी ने क्या दिया? कुछ भी नहीं। फिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org