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________________ १६ अप्पाणं सरणं गच्छामि अल्फा तरंगों का उत्पादन कैसे ? प्रश्न होता है कि हम आनन्द को उपलब्ध कैसे करें ? अल्फा तरंगों का उत्पादन कैसे हो सकता है? अध्यात्म की भाषा में आनन्द की उपलब्धि का मार्ग यह है- पहले उपाधियां मिटें । इसका तात्पर्य है कि कषाय के सारे आवेग समाप्त हों । उपाधियों के मिटने पर आधियां - मानसिक बीमारियां विनष्ट हो जाती हैं। आधियों के न होने पर व्याधियां- शारीरिक रोग नहीं रह सकते । व्याधि के मिटने पर जीवन आनन्द से भर जाता है । उपाधि है मूल शरीर में रोग होना इस बात का द्योतक है कि मन में रोग है । व्याधि आधि की सूचना देती है। आधि है तो उपाधि अवश्य ही होगी । उपाधि के बिना मन की उपलझन नहीं होती। यह एक क्रम है। निदान किसका करे? व्याधि का, आधि का या उपाधि का ? व्याधि का निदान करने से क्या होगा? आधि भी मूल नहीं है । उसका निदान भी निरर्थक होगा। हमें मूल का निदान करना चाहिए । उपाधि मूल है, स्रोत है । उपाधि की चिकित्सा करें। सब कुछ स्वस्थ हो जाएगा। उपाधि की चिकित्सा से आधि मिटेगी। आधि के मिटने पर व्याधि नहीं जन्मेगी । उपाधि का मूल है - सघन मूर्च्छा । मनुष्य इतना मूर्च्छित है कि वह सचाई को पकड़ ही नहीं पाता। हमारे भीतर अनन्त आनन्द का स्रोत बह रहा है, किन्तु हम उससे अजान हैं। यह अजानकारी ही आनन्द की उपलब्धि में बाधक है । उस संपदा का पता कैसे चले ? यह एक प्रश्न है । विश्राम कहां और क्या? हमारी व्यस्तता आनन्द के स्रोत का पता लगाने नहीं देती। आज का आदमी इतना व्यस्त है कि वह विश्राम करना जानता ही नहीं । नींद विश्राम है, परन्तु वह केवल स्थूल अवयवों को ही विश्राम दे पाती है। कुछ वैज्ञानिकों ने कहा- नींद से विश्राम मिलता है । सम्मोहन भी विश्राम देता है । किन्तु सबसे अधिक विश्रामदायक है ध्यान । एक आदमी दिन-रात सोया रहता है । उसे विश्राम की अनुभूति होती है । किन्तु यदि वही आदमी कुछ घंटों तक ध्यान की गहराई में जाता है तो उसे और अधिक विश्राम की अनुभूति होती है । नींद स्थूल मन को विश्राम दे सकती है । किन्तु हमारी कोशिकाओं को विश्राम कहां मिल पाता है । वे नींद में भी सक्रिय रहती हैं। हृदय और श्वास - तन्त्र को विश्राम कब मिलता है ? नींद में भी वे सतत क्रियाशील रहते हैं । मस्तिष्क भी निरन्तर सक्रिय रहता है। आदमी सोता कम है, जागता अधिक है । सोते समय भी सपनों की शृंखला में जागता रहता है। कहां आ पाती है नींद ! नींद के अभाव में थकान नहीं मिटती, भारीपन नहीं मिटता । यह सब मिट सकता है यदि आदमी विश्राम करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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