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________________ क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती है? १५ छोटी रेखा को नहीं मिटाया जा सकता। छोटी बात को छोड़ने के लिए बड़ी बात उपलब्ध करनी होती है। ___ आनन्द सबसे बड़ी उपलब्धि है। मैं इस आनन्द की व्याख्या वैज्ञानिक शब्दावली में प्रस्तुत करना चाहता हूं। मेडिकल इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास ने एक उपकरण का निर्माण किया है जिससे मनुष्य के मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को देखा जा सकता है और उन्हें संप्रेषित भी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की विद्युत् तरंगें होती हैं-अल्फा, बीटा, डेटा, थेटा आदि-आदि। जब 'अल्फा' तरंगें अधिक होती हैं तब आदमी आनन्द से भर जाता है। उसके सारे अवसाद समाप्त हो जाते हैं, कठिनाई दूर हो जाती है। जब 'बीटा' तरंगें अधिक होती हैं तब आदमी अवसाद से भर जाता है, उसमें उत्तेजनाएं उभरती हैं। इस प्रकार मस्तिष्कीय विद्युत-तरंगों के द्वारा आदमी कभी सुख का अनुभव करता है और कभी दुःख का अनुभव करता है। अध्यात्म का सूत्र है कि अल्फा तरंगों को पैदा किया जाए और आनन्द को बढ़ाया जाए। उस आनन्द की इतनी वृद्धि हो कि इन्द्रियों के संवेदनों से होने वाली क्षणिक आनन्दानुभूति उसके सामने फीकी पड़ जाए। जब यह घटित होता है तब व्यक्ति का बाह्य आकर्षण छूटने लगता है और आन्तरिक आनन्द की उपलब्धि के लिए प्रयत्न आरम्भ हो जाता है। यही दूरी को मिटाने का आदि-बिन्दु है। जब तक व्यक्ति को यह लगता है कि इन्द्रियजन्य आनन्द को छोड़ना बहुत बड़े आनन्द से वंचित रहना है, तब तक व्यक्ति उसे छोड़ नहीं सकता। वह उसे तभी छोड़ सकता है जब वह आनन्द छोटा बन जाए, अर्थहीन बन जाए। सब जानते हैं कि अब्रह्मचर्य से शक्ति क्षीण होती है, ऊर्जा क्षीण होती है, पर सभी ब्रह्मचारी कहां बन पाते हैं? अल्फा तरंगों का उत्पादन बड़े आनन्द को उपलब्ध करा सकता है। उस स्थिति में सारे तनाव समाप्त हो जाते हैं। मन आनन्द, सुख और शान्ति से भर जाता है। तब ऐसा अनुभव होता है कि जो प्राप्तव्य था वह प्राप्त हो गया। अब खोज बेकार है, भटकाव निकम्मा है। अब न सुन्दर रूप आकर्षण पैदा करता है और न मधुर संगीत ही मन को लुभा पाता है। संगीत सुनने की अपेक्षा महसूस नहीं होती। अपने भीतर इतना मधुर संगीत प्रारम्भ हो जाता है कि सुनते-सुनते जी नहीं अघाता। अपने भीतर रस का इतना बड़ा झरना बहने लग जाता है कि उसके सामने सब नीरस-सा लगता है। आनन्द की उपलब्धि किए बिना, सरसता की प्राप्ति के बिना कथनी और करनी की दूरी मिट नहीं सकती। ध्यान का नशा चढ़े बिना आनन्द उपलब्ध नहीं होता। मदिरापान करने वाला भी मूर्ख नहीं है। वह आनन्द पाने के लिए मदिरा पीता है। यह मदिरा कथनी और करनी की दूरी को बनाए रखती है। यदि इससे छुटकारा पाना है तो ध्यान की मदिरा पीनी होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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