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________________ १४ अप्पाणं सरणं गच्छामि सब चीजें खाते देखता है तब इन्द्रियों के संवेदन जाग उठते हैं, जीभ के संवेदन सक्रिय हो जाते हैं और मुंह से लार टपकने लग जाती है। सिद्धान्त की बात विस्मृत हो जाती है। यह अन्तर इसलिए है कि सिद्धान्त में रस नहीं है और जहां रस नहीं होता व्यक्ति उसे मानता नहीं। आदमी को रस है इन्द्रियों के संवेदनों में, इन्द्रियों के भोग में। हम उसकी वर्जना करते हैं। यह कैसे संभव हो सकेगा? यह रास्ता समाधान का रास्ता नहीं है। सिद्धान्त अपने स्थान पर बैठे रहेंगे और आदमी वही काम करेगा जिसमें रस आता है, आनन्द मिलता है। इस स्थिति में दूरी मिटने का प्रश्न ही नहीं उठता। ____ अध्यात्म में रस है। वह बहुत सरस है। दूरी को मिटाने का अध्यात्म एक उपाय बन सकता है। भौतिक जगत् में दूरी को मिटाने का कोई सूत्र उपलब्ध नहीं है। वहां दूरी बढ़ती है, मिटती नहीं, क्योंकि वहां भोग है। भोग में पाने की भावना होती है, बटोरने की इच्छा होती है। जहां बटोरने की भावना होती है वहां सिद्धान्त इतना कारगर नहीं होता। पदार्थ के जगत् में स्वार्थ सर्वोपरि होता है। अपने लिए, अपनी इन्द्रियों के लिए, अपने संवेदनों की पूर्ति के लिए-इनके अतिरिक्त पदार्थ जगत् में दूसरा कोई सूत्र नहीं है। कानून प्रकाश से अंधकार की ओर ले जाते हैं आज बुराइयों को मिटाने के लिए, समाज की भलाई और कल्याण के लिए तथा राज्य-व्यवस्था के लिए अनेक नियम और कानून बनाए जा रहे हैं। किन्तु आदमी के व्यवहार में कोई अन्तर नहीं आता। दंड के भय से वह प्रत्यक्ष में अनैतिक आचरण करने से हिचकता है किन्तु परोक्ष में वह वैसा करने से नहीं हिचकता। ये सारे नियम और कानून उसे प्रकाश से अंधकार की ओर ले जाते हैं। प्रत्यक्ष प्रकाश है और परोक्ष अंधकार । वह चाहता है, मेरे आचरण का किसी को पता न चले। उसे यह चिंता नहीं है कि यह अनैतिक आचरण है, यह नहीं होना चाहिए। उसे केवल चिंता है, किसी को पता न लगे। कितनी गहरी बीमारी है। बीमारी की जड़ें बहुत गहराई में हैं। यही दूरी बनाये हुए है। इस व्यवस्था और पदार्थ-जगत् में दूरी को नहीं मिटाया जा सकता। दूरी को मिटाने का सूत्र अध्यात्म के आचार्यों की खोजों के द्वारा जो महत्त्वपूर्ण सूत्र उपलब्ध हुआ है वही इस दूरी को मिटा सकता है। वह सूत्र है-आनन्द की खोज। उन्होंने आनन्द को खोजा और एक दर्शन दिया कि जो आनन्द तुम पदार्थ से पाना चाहते हो उससे अधिक आनन्द तुम्हारे पास है। उसे प्राप्त करो। एक बड़े आनन्द को पाए बिना छोटे आनन्द को नहीं छोड़ा जा सकता। बड़े सुख को उपलब्ध किए बिना छोटे सुख को नहीं छोड़ा जा सकता। बड़ी रेखा को खींचे बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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