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________________ क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती है ? १३ दूरी मिट जाए, यदि ज्ञान और आचरण की दूरी मिट जाए तो हमसे भिन्न न कोई कल्पवृक्ष है, न कोई कामधेनु है और न कोई चिन्तामणि है। जब तक दूरी है, तब तक हम दूरस्थ पदार्थों को देखेंगे, उन्हें महत्त्व देंगे, भीतर में नहीं देख पाएंगे। हम दूर की बात सोचेंगे, अपनी बात कभी नहीं सोच पाएंगे । दूरी कैसे मिटे? ज्ञान और आचरण की दूरी कैसे मिटे - यह प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है। लोग मानते हैं - शास्त्र पढ़ते जाओ, प्रवचन सुनते जाओ, सब कुछ अपने आप घटित हो जाएगा। यदि अपने आप कुछ घटित होता तो आज तक सब कुछ घटित हो गया होता। पर अपने आप कुछ नहीं होता । चाहे कोई व्यक्ति चालीस वर्ष या चालीस जन्मों तक भी चलता रहे, वह गन्तव्य तक नहीं पहुंच सकेगा। बिना प्रयत्न किए, बिना विधि को समझे कुछ भी घटित नहीं होता। हमें पद्धति को जानना होगा । जो व्यक्ति चाबी घुमाना नहीं जानता, वह ताला नहीं खोल पाएगा । दूरी मिटाने का एक उपाय है । जब सिद्धान्त सरसता में बदल जाता है तब दूरी अपने आप मिट जाती है। जब तक केवल सिद्धान्त रहेगा, तब तक दूरी बनी रहेगी। सरसता आते ही दूरी समाप्त हो जाती है । सरसता केवल अध्यात्म-शास्त्र का ही सिद्धान्त नहीं है, काव्य - शास्त्र में भी उसकी प्रमुखता है । वह काव्य अच्छा नहीं होता जिसमें रस नहीं होता। वह वक्तृत्व भी अच्छा नहीं होता जो सरस नहीं होता । वह इक्षु भी निकम्मा होता है जिसमें रस नहीं होता । वह फल भी निकम्मा होता है जिसमें रस नहीं होता। सरसता ही श्रेष्ठ होती है। मनुष्य का सारा आकर्षण रस में है, सुख में है। नीरस को कोई नहीं चाहता । सिद्धान्त और रस 'बर्फ खाने से गला खराब होता है' -यह सिद्धांत आपने बच्चे को बता दिया। बच्चे ने सुन लिया । किन्तु जैसे ही बर्फ सामने आती है, बच्चा खाने को ललचा जाता है, क्योंकि उसका रस सिद्धान्त में नहीं है, उसका रस बर्फ खाने में है। हम जितने सिद्धान्त बनाते हैं वे कहते हैं- ऐसा करो, ऐसा मत करो । यह वर्जना का सिद्धान्त है और यह विधि का सिद्धान्त है । सिद्धान्त मस्तिष्क तक जाते हैं । जब भावना की, इन्द्रियों की और संवेदनों की मांग उभरती है तब व्यक्ति वैसा ही आचरण कर लेता है । वह सिद्धान्त को भूल जाता है । वैसा करने में उसे रस मिलता है, आनन्द मिलता है । जब रस और आनन्द उपलब्ध होता है तब कौन सिद्धांत को मानेगा? क्यों मानेगा ? डॉक्टर प्रमेह के रोगी से कहता है-आलू मत खाओ, चावल और चीनी मत खाओ । किन्तु जब रोगी रसोईघर में जाता है और दूसरे व्यक्तियों को ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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