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________________ २. क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती है? व्यक्तित्व के दो कोण हैं। एक है वीतरागता और दूसरा छद्मस्थता। एक है शिखर और एक है तलहटी। वीतराग पूर्णता का प्रतीक है और छद्मस्थ अपूर्णता का। छद्मस्थ की पहचान के अनेक लक्षण हैं। उनमें एक है'नो जहावाई तहाकारी'। छमस्थ वह होता है जो जैसा कहता है वैसा करता नहीं। कथनी और करनी में अन्तर होना छद्मस्थ का लक्षण है। जब कथनी और करनी की दूरी मिटती है तब धर्म की मंजिल प्राप्त होती है अन्यथा व्यक्ति चलता ही रहता है, भटकता ही रहता है, गन्तव्य तक नहीं पहुंच पाता। ज्ञान और आचरण की दूरी सहजतया मिटती नहीं। आदमी जानता है पर कर नहीं पाता। वह जानता कुछ है और करता कुछ है। कहता कुछ है और करता कुछ है। एक बहुत बड़ी समस्या है मनोविज्ञान के सामने भी और धर्म के सामने भी। धर्म ने इस दिशा में प्रयत्न किया कि कथनी और करनी की दूरी मिटे, ज्ञान और आचरण की दूरी मिटे। फिर भी यह दूरी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इस पहेली को कैसे सुलझाया जाए? आदमी के चाहने और होने में भी दूरी रहती है। आदमी चाहता है वह स्वस्थ रहे, कभी रोग से आक्रान्त न हो। पर रोग होते हैं। वह चाहता है कि मन की उलझन न हो, पर मन की उलझनें बढ़ती जाती हैं। ऐसा क्यों होता है? चाह के अनुसार काम क्यों नहीं होता? चिन्तामणि, कल्पवृक्ष, कामधेनु अगर यह घटित हो जाता कि आदमी ने जो चाहा, वह हो गया तो आदमी चिन्तामणि रत्न होता, कल्पवृक्ष और कामधेनु होता। चिन्तन के अनुसार फल दे दे, वह चिन्तामणि। कल्पना के अनुसार जो फलित हो, वह कल्पवृक्ष और कामना के अनुसार जो वर्तन करे, वह कामधेनु । क्या हमने अपने भीतर विद्यमान शक्तियों को ही पदार्थ मानकर अभिव्यक्ति दी है? हमारे भीतर चिन्तन है, कल्पना है और कामधेनु है। ये तीन महत्त्वपूर्ण शक्तियां हैं। सब कुछ भीतर विद्यमान है, किन्तु मनुष्य उनको जानता ही नहीं, फिर वह उनकी कल्पना कैसे करता? यदि चाह और उपलब्धि की दूरी मिट जाए. यदि कथनी और करनी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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