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________________ I अनुभव जागे ११ नहीं आता । चरित्र आता है वृत्तियों से और वह आता है ग्रन्थि तंत्र से । ग्रन्थियों का स्थान मस्तिष्क का स्थान नहीं है । आज तक यही माना जाता था कि मस्तिष्क हमारे शरीर का मुख्य अवयव है। इसी प्रकार हृदय और गुर्दे भी महत्त्वपूर्ण अवयव माने जाते हैं। किन्तु अब शरीर - शास्त्रीय नये आविष्कारों ने यह प्रमाणित कर दिया कि शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण अवयव है हमारा ग्रंथि -तन्त्र । डक्टलेस ग्लैण्ड्स - अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव बाहर नहीं होता। वह सीधा रक्त में ही मिल जाता है। आवेग, आवेश और भ्रष्ट आचरण - इन सबका निमित्त है ग्रन्थि-तन्त्र । ग्रंथि-तंत्र को प्रभावित किए बिना आदमी को सच्चरित्र, प्रामाणिक नहीं बनाया जा सकता । भ्रष्टाचार को समाप्त करने और जीवन में सचाई लाने के लिए ग्रन्थि - तन्त्र को प्रभावित करना होगा। आदमी उपदेशों से सच्चरित्र नहीं होता, जितना वह ग्रन्थि - तन्त्र के स्रावों को बदलने से होता है । यह तथ्य आज अनुभवसिद्ध हो चुका है। यह नियम पिचानवें प्रतिशत लोगों पर लागू होता है। कुछेक व्यक्ति, जिनकी चेतना अत्यन्त प्रबुद्ध होती है, वे इसके अपवाद होते हैं। समस्त उत्तेजनाएं, वासनाएं और कामनाएं ये उपाधि हैं । प्रेक्षा की निष्पत्ति व्याधि, आधि और उपाधि-ये तीन अवरोधक हैं। इनको समाप्त करने पर, इनकी सीमाओं को पार करने पर समाधि की सीमा प्रारंभ होती है । समाधि का अनुभव, स्वास्थ्य का अनुभव, परम आनन्द का अनुभव, वीतरागता का अनुभव - यह सब तीनों अवरोधों को तोड़ने पर ही हो सकता है । प्रेक्षा ध्यान समाधि तक पहुंचने की प्रक्रिया है । समाधि तक पहुंचने के लिए व्याधि, आधि और उपाधि को देखना, समझना और उन पर नियंत्रण करना होता है । प्रेक्षा ध्यान यह सब करने के लिए व्यक्ति को सन्नद्ध करता है । प्रारंभ में मैं यही मंगल भावना करता हूं कि सभी साधकों की प्रेक्षा जागे, दर्शन की शक्ति विकसित हो, संकल्प की शक्ति जागे, परिवर्तन का सामर्थ्य बढ़े और परम आनन्द - समाधि का अनुभव हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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