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________________ ३२. वास्तविक समस्याएं और तनाव हम जिस जगत में जी रहे हैं, वह है विरोधी युगलों का जगत् । जगत् में एक भी तत्त्व ऐसा नहीं है जो केवल एक ही हो, जिसका कोई विरोधी न हो। कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है, जिसका प्रतिपक्षी न हो। कोई भी शब्द ऐसा नहीं है, जिसका प्रतिपक्षी शब्द न हो। प्रकाश है तो अंधकार भी है। ठंडा है तो गरम भी है। अच्छा है तो बुरा भी है। जितना पक्ष है, उतना ही प्रतिपक्ष है। केवल एक उपलब्ध नहीं होता। युगल मिलता है। एक है, दूसरा विरोधी है। यह द्वन्द्वों का जगत् है। सर्वत्र द्वंद्व है-दो है। संयोग है, वियोग है। संबंध है, विसंबंध है। तनाव का उपादान और निमित्त इस विरोधी युगलों के जगत् में तनाव न हो, यह कैसे संभव हो सकता है? यहां तनाव के उपादान भी हैं और निमित्त भी हैं। दोनों हैं। कोरा उपादान हो और निमित्त न हो, तो अभिव्यक्ति नहीं मिलती। कोरा निमित्त हो और उपादान न हो, तो भी कुछ नहीं बनता। उपादान और निमित्त-दोनों अपेक्षित होते हैं। उपादान मूल है और निमित्त सहयोगी। जब दोनों का योग होता है तब एक स्थिति का निर्माण होता है। तनाव के उपादान हैं-व्यक्ति का अपना अन्तस्तल, संस्कार, आंतरिक अर्जना, संचित कर्म और उसके विकार तथा मूर्छा, आसक्ति, ममत्व आदि। तनाव का निमित्त कारण है-सामाजिक परिस्थिति। आदमी सामाजिक वातावरण में जीता है, अकेला नहीं जीता। समाज में तनाव बढ़ाने के अनेक निमित्त हैं। पग-पग पर तनाव का निमित्त मिलता है। कोई नहीं बच सकता। घटना कहीं घटित होती है और यहां बैठा आदमी तनाव से भर जाता है। आज संसार के साधन इतने तीव्र-गतिक हैं कि कोई घटना गुप्त नहीं रह सकती। दुनिया की सारी दूरी समाप्त हो चुकी है। घटना सुनते ही आदमी तनावग्रस्त हो जाता है। भुट्टो को फांसी पाकिस्तान में दी गई। घटना वहां घटित हुई और कश्मीर में गांव जला दिये गए। वहां के आदमी उस घटना से प्रभावित हो गए। घटना कहीं घटित होती है और तनाव कहीं हो जाता है। क्रिकेट कहीं खेला जा रहा है और यहां का आदमी उससे प्रभावित हो रहा है। द्वितीय महायुद्ध में हमने देखा कि लोगों के दो खेमे बन जाते थे। एक खेमा हिटलर का पक्ष लेता और दूसरा चर्चिल का। युद्ध किसी भूमि पर लड़ा जा रहा था और प्रभावित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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