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________________ ३०. समस्या के मूल की खोज एक भाई ने मेरे पास आकर कहा-'मन को शान्त करना चाहता हूं। मन बहुत अशान्त है। मैंने पूछा-क्या हुआ? उसने कहा-'अभी-अभी मेरी पत्नी का देहावसान हो गया। उसका वियोग मेरे मन में खटक रहा है। मन को समझाता हूं पर वह मानता ही नहीं। यह शिकायत एक ही नहीं, सबकी है कि हम मन को समझाते हैं, पर वह मानता ही नहीं। मनुष्य ने इस सूत्र को पकड़ लिया कि मन मानता ही नहीं, समस्या कैसे सुलझे! यह बहुत बड़ा बहाना है। जो मानता है उसे हम मनवाना नहीं चाहते और जो बेचारा नहीं मानता उसे हम मनवाना चाहते हैं। जिसे मनवाना चाहिए उस ओर हम ध्यान नहीं देते। यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। जब तक हम समस्या का मूल नहीं खोज लेते, तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकता। प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि समस्या मिटे, दुःख मिटे, सुख आए, सुलझाव आए। चाहता है, पर केवल चाह से कुछ भी नहीं मिल सकता। मनुष्य अनन्तकाल तक चाह करता रहे पर वह चाह कभी पूरी नहीं होती। जब तक चाह की पूर्ति के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया जाता, तब तक चाह से कुछ नहीं बनता। चाह के अनुरूप मार्ग की खोज होनी चाहिए। सबसे पहले यह खोज होनी चाहिए कि समस्या का मूल क्या है? जब तक समस्या का मूल नहीं खोजा जाता, तब तक समस्या का अंत नहीं हो सकता। एक समस्या को सुलझाते हैं तो दूसरी समस्या सामने आ खड़ी हो जाती है, क्योंकि मूल विद्यमान है। जब तक मूल (जड़) हरा-भरा है तो वसन्त भी आएगा और पतझड़ भी आएगा। इनको रोका नहीं जा सकता। नये पत्ते आते रहेंगे, पुराने पत्ते गिरते रहेंगे, उनका अन्त कभी नहीं होगा, क्योंकि जड़ हरी-भरी है। मूल बात है जड़ की, पत्ते की नहीं है। हम पत्ते का समाधान चाहते हैं। यह समाधान होता नहीं। समाधान के लिए जड़ तक पहुंचना जरूरी है। समस्या का मूल है मनोबल की दुर्बलता आज की समस्या का मूल है-चित्त की दुर्बलता, मनोबल की कमी। जब मन की शक्ति कम होती है तब समस्याएं भयंकर बनती चली जाती हैं। जब मन की शक्ति दृढ़ होती है तब बहुत बड़ी समस्या भी छोटी हो जाती है। जब मन का बल टूट जाता है तब राई पहाड़ बन जाती है। समस्या को बड़ा-छोटा नहीं कहा जा सकता। कोई भी समस्या स्वयं में बड़ी नहीं है और कोई भी समस्या स्वयं में छोटी नहीं है। मनोबल अटूट है तो प्रत्येक समस्या छोटी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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