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________________ २८६ अप्पाणं सरणं गच्छामि व्युत्सर्ग-चेतना चौथा सुफल यह होता है कि जब विवेक-चेतना पुष्ट होती है तब व्युत्सर्ग की क्षमता बढ़ती है, त्याग और विजर्सन की शक्ति का विकास होता है। फिर छोड़ने में संकोच नहीं होता, चाहे शरीर को छोड़ना पड़े, इन्द्रिय-विषयों को छोड़ना पड़े, परिवार या धन को छोड़ना पड़े। उसमें छोड़ने की इतनी क्षमता बढ़ जाती है कि वह जब चाहे तब किसी को भी छोड़ सकता है। कोई मोह नहीं रहता। व्युत्सर्ग की चेतना जागने पर साधक को स्पष्ट अनुभव हो जाता है कि मैं चैतन्यमय हूं। यही मेरा अस्तित्व है। चैतन्य के अतिरिक्त जितना भी जुड़ा हुआ है वह विजातीय है, मेरा नहीं है। वह रहे या न रहे इससे मुझे क्या? समय पर सबको छोड़ दूंगा। व्युत्सर्ग-चेतना से त्याग की शक्ति प्रबल होती है। समाधि-यात्रा और निष्पत्ति समाधि का पहला बिन्दु है-केवल ज्ञान और केवल दर्शन-केवल जानना और केवल देखना। इस बिन्दु से हम समाधि की साधना प्रारंभ करते हैं। दूसरे शब्दों में, समाधि की यात्रा संवेदनशून्य ज्ञान और संवेदनशून्य दर्शन से होती है। हम प्रयत्न करते हैं कि हमारे कुछ क्षण ऐसे बीतें जिनमें हम केवल जानें, केवल देखें, कोई संवेदन साथ में न जुड़े। प्रियता और अप्रियता, राग और द्वेष-कोई विकल्प न रहे। यहां से समाधि की यात्रा शुरू होती है और वह आगे बढ़ती-बढ़ती निर्विकल्प चेतना तक पहुंच जाती है। यहां पहुंचने पर विचारों के विकल्प, पदार्थों के विकल्प, सब विकल्प शांत हो जाते हैं। मन का समुद्र शांत हो जाता है। उसमें विकल्प की कोई तरंग नहीं उठती। जिस चेतना में विकल्प की हल्की-सी तरंग भी नहीं उठती, वह है निर्विकल्प चेतना। उस स्थिति तक पहुंच जाना ही हमारी साधना का उद्देश्य है। यही हमारा गन्तव्य है, यही हमारी मंजिल है। जैसे-जैसे चेतना का विकास होगा, जैसे-जैसे विकल्पों को कम करते हुए निर्विकल्प चेतना के क्षणों में जीने का अभ्यास होगा, वैसे-वैसे वह चेतना पुष्ट होगी और चेतना का वह अनन्त सागर एक दिन निस्तरंग और ऊर्मिविहीन बन जाएगा। उस स्थिति में, उस परम सत्य का साक्षात्कार होगा जिसके लिए हजारों-हजारों लोग सदा उत्सुक रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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