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________________ २८८ अप्पाणं सरणं गच्छामि मनोबल टूटा हुआ है तो प्रत्येक समस्या बड़ी है। समस्या का छोटा होना या बड़ा होना, भयंकर होना या सरल होना इस बात पर निर्भर है कि मनोबल कम है या अधिक । आदमी समस्या पर ध्यान अधिक केन्द्रित करता है, समस्या को सुलझाने का अधिक प्रयत्न करता है। जैसे-जैसे वह सुलझाने का प्रयत्न करता है, वैसे-वैसे समस्या उलझती जाती है और इसलिए उलझती जाती है कि समस्या को सुलझाने की जो शक्ति है-इच्छाशक्ति, एकाग्रता की शक्ति या संकल्प-शक्ति-वह वहां नहीं है। व्यक्ति न इच्छा-शक्ति को जगाने का अभ्यास करता है, न एकाग्रता को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और न संकल्प-शक्ति को जगाने का प्रयत्न करता है। जब यह नहीं होता, भीतर से शक्ति का जागरण नहीं होता तब मनोबल नहीं बढ़ता और मनोबल के अभाव में समस्या का समाधान हो सके, यह संभव नहीं हो सकता। समस्या के समाधान के लिए शक्ति का संचय जरूरी है। जितनी शक्ति है उतनी यदि खर्च हो जाती है तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता। शक्ति का संचय पत्नी पढ़ी-लिखी थी। उसने पति से कहा-अब आय-व्यय का हिसाब मैं रखा करूंगी। उसने एक कॉपी ली। एक ओर आय का विभाग, एक ओर व्यय का विभाग। महीना पूरा हुआ। आय के विभाग में लिखा था-हजार रुपयों की आय। व्यय के विभाग में लिखा था-सब खर्च हो गए। जितनी शक्ति का अर्जन होता है, उतनी शक्ति खर्च हो जाए तो कोई अतिरिक्त कार्य नहीं किया जा सकता। अतिरिक्त कार्य के लिए संचय आवश्यक होता है। शरीर में शक्ति की जितनी आय होती है, यदि वह सारी खर्च हो जाती है तो केवल जीवन जीया जा सकता है, कोई अतिरिक्त कार्य नहीं किया जा सकता। अतिरिक्त कार्य या विकास के लिए शक्ति का संचय अपेक्षित होता है। यह शक्ति-संचय तभी संभव है जब हम तनाव-विसर्जन की प्रक्रिया को जानें। जो व्यक्ति इस तनाव-विसर्जन की प्रक्रिया को नहीं जानता वह शक्ति का अतिरिक्त संचय नहीं कर पाता। जो शक्ति अर्जित होती है वह विसर्जित हो जाती है। शक्ति पैदा होती है पर तनाव उस शक्ति को क्षीण कर देता है। तब मनुष्य कोई बड़ा काम नहीं कर सकता। उसके पास बड़ा काम संपन्न करने की शक्ति ही नहीं बचती। मनुष्य और पशु में यही तो अन्तर है कि पशु शक्ति का संचय नहीं कर सकता। शारीरिक शक्ति को भले ही वह कुछ संचित कर ले, पर मस्तिष्कीय शक्ति का संचय वह कर ही नहीं सकता। क्योंकि वह शक्ति-संचय की प्रक्रिया से अनभिज्ञ है। मनुष्य शक्ति-संचय की प्रक्रिया को जानता है। मनुष्य में चिन्तन की यह विशेषता है कि वह शक्ति के संचरण और संचय की पद्धति को जानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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