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________________ चैतन्य का अनुभव २८३ हाथी ने दूसरे मदोन्मत्त हाथी को परास्त कर दिया। एक सांड ने दूसरे सांड पर विजय पा ली। इतना ही हुआ। वह मिटा नहीं, नष्ट नहीं हुआ। परास्त होने वाला निमित्त पाकर पुनः फुफकार सकता है। उपशांत किया हुआ क्रोध न जाने कब पुनः सक्रिय होकर सताने लग जाए। विकल्प के द्वारा विकल्प का उपशांत-यह दमन की प्रक्रिया है। यह क्षय की प्रक्रिया नहीं है । उस विकल्प को क्षीण करने की प्रक्रिया है-निर्विकल्प चेतना का जागरण। निर्विकल्प चेतना जैसे-जैसे पुष्ट होती है, क्रोध का विकल्प अपने आप क्षीण होता जाता जब निर्विकल्प चेतना शक्तिशाली होती है तब क्षमा स्वयं एक आलंबन बन जाती है। मुक्ति का अर्थ है-निर्लोभता। लोभरहित चेतना एक आलंबन बनती है। अनुभव होने लगता है कि चेतना में लोभ का कोई पर्याय नहीं है। चेतना स्वयं एक आलोक है। लोभ चेतना का एक विकार है, अन्धकार है। उस विकार का साक्षात् होने लगता है। इसी प्रकार कपट की चेतना का साक्षात् होता है, ऋजुता की चेतना जाग जाती है। अहंकार के विकल्प का साक्षात् होता है। मृदुता की चेतना जाग जाती है। साधक को यह स्पष्ट अनुभव होने लगता है कि क्रोध चेतना का स्वभाव नहीं है, अहंकार और लोभ चेतना का स्वभाव नहीं है। माया और कपट चेतना का स्वभाव नहीं है। चेतना का स्वभाव है-क्षमा, ऋजुता, मृदुता, लघुता आदि। ये ही निर्विकल्प चेतना के आलंबन बनते हैं। इस चेतना के जागने पर सारे ग्रन्थ छूट जाते हैं, स्वाध्याय और अनुप्रेक्षाएं छूट जाती हैं। उनके केवल सूक्ष्य पर्याय बचते हैं, स्थूल पर्याय छूट जाते हैं। जब क्षमा, ऋजुता, मृदुता आदि चेतनाओं का साक्षात्कार होता है तब उनके नीचे छिपी हुई सूक्ष्म चेतना का भी साक्षात्कार होने लगता है। चित्त निर्मल होता है, स्वस्थ बनता है। अस्वस्थ चित्त से क्या-क्या नहीं हो जाता। विचार और आचार भी रोग के कारण __ आत्रेय आयुर्वेद के महान् आचार्य थे। अग्निवेश ने उनसे पूछा-'भगवन्! आपने कहा है कि रोगों का कारण है कुपथ्य। किन्तु कभी-कभी एक साथ इतने रोग फैलते हैं कि सारे गांव, नगर और पूरा जनपद ही नष्ट हो जाता है। क्या सबने एक साथ कुपथ्य कर लिया कि सबको एक साथ मरना पड़ा?' आत्रेय ने कहा-'वत्स! केवल कुपथ्य ही रोगों का कारण नहीं है। मनुष्यों के विचार और आचरण भी रोगों के कारण बनते हैं। जब एक साथ कोई बुरा विचार फैलता है तब महामारी की स्थिति बन जाती है। जब एक साथ कोई बुरा आचरण होता है तब भयंकर बीमारी से सारा जनपद आक्रान्त हो जाता है। जब तक बुरा विचार और बुरा आचरण नहीं छूटता, तब तक बीमारी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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