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________________ २८२ अप्पाणं सरणं गच्छामि खाली पन्ने का क्या मूल्य हो सकता है व्यवहार की दुनिया में और खाली डिब्बे का क्या मूल्य हो सकता है व्यवहार की दुनिया में? इसी प्रकार खाली चित्त और खाली मन का भी क्या मूल्य हो सकता है व्यवहार की दुनिया में? व्यवहार में जीने वाले यही चाहते हैं कि ये सब सदा भरे ही रहें, कभी खाली न हों। जब अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है तब भरे का क्या मूल्य है और खाली का क्या मूल्य है, स्पष्ट हो जाता है। उस यात्रा में यह अनुभव होता है कि लिखा हुआ कागज चला गया, अच्छा हुआ। भरा हुआ डिब्बा चला गया तो अच्छा हुआ। भरा हुआ मन, भरी हुई बुद्धि, भरा हुआ चित्त खाली हो गया तो अच्छा हुआ। वहां खाली होना ही श्रेयस्कर माना जाता है। जब खाली होने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है तब उस क्षण में जो अनुभव होता है, वही वास्तव में चैतन्य का अनुभव है। चैतन्य के अनुभव का वही क्षण है जिस क्षण में हमारा चित्त खाली हो गया होता है। उस क्षण में न श्वास-प्रेक्षा, न शरीर-प्रेक्षा, न चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा और न लेश्या-ध्यान, कुछ भी आवश्यक नहीं होता। इस संदर्भ में एक प्रश्न आता है कि जिन क्रियाओं की जरूरत नहीं है, उन्हें हम करते ही क्यों है? जिन्हें छोड़ना है, उन्हें क्यों करते जा रहे हैं? प्रश्न स्वाभाविक है। इस संसार का स्वभाव ही ऐसा है कि जिसे छोड़ना होता है, उसे पहले करना होता है। नदी को पार कर नौका को छोड़ना पड़ता है। किन्तु जब तक नदी का किनारा न आ जाए, तब तक नौका पर चलना होता है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता। जब तक निर्विकल्प चेतना न जाग जाए, तब तक अध्ययन, पुनरावर्तन, जिज्ञासा, अनुप्रेक्षा-ये सब करने पड़ते हैं। विचार-ध्यान का अभ्यास करना पड़ता है। जब विचार-ध्यान की सीमा समाप्त होती है और निर्विचार-ध्यान की सीमा में प्रवेश करते हैं, निर्विचार चेतना में जाते हैं, केवल आत्म-ध्यान की भूमिका में जाते हैं तब अध्ययन, अनुप्रेक्षा आदि छूट जाते हैं। कोई आवश्यकता नहीं रहती। वहां फिर आलंबन बनते हैं-क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव। निर्विकल्प-चेतना के आलंबन निर्विकल्प-चेतना का पहला आलंबन बनता है-क्षान्ति। इसका अर्थ है-क्रोध-मुक्ति। क्रोध के पर्याय नष्ट होते हैं और क्रोध-मुक्ति की भावना जाग जाती है। वह उस चेतना का आलंबन बन जाता है। आत्म ध्यान से क्रोध नष्ट होता है, क्रोध को देखने से क्रोध नष्ट होता है। क्रोध आता है। श्वास रोका, क्रोध नष्ट हो गया। अच्छा विचार उभरा, क्रोध शांत हो गया। यह क्रोध का उपशमन है। इसे कुछ लोग दमन भी कहते हैं। दमन और उपशमन एक ही बात है। क्रोध भी एक विकल्प है। दूसरा विकल्प आते ही क्रोध शांत हो जाता है। एक विकल्प के द्वारा दूसरे विकल्प को परास्त कर दिया। एक शक्तिशाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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