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________________ २७८ अप्पाणं सरणं गच्छामि चित्त सूक्ष्म हुआ, चेतना सूक्ष्म हुई, चेतना की कुशाग्रीयता बढ़ी और तद्प आत्मा का आभास हो गया। यह अतीन्द्रिय तत्त्वों के साथ संपर्क स्थापित करने की पद्धति है, सूक्ष्म तत्त्वों को जानने की एक प्रक्रिया है। मानसिक प्रक्षेपण जब सूक्ष्म सत्य जानने होते हैं तब सबसे पहले कायोत्सर्ग करना होता है। शरीर को शिथिल कर, सर्वथा शून्य कर, पूर्ण रिक्त करना होता है। कोई तनाव न रहे। न शरीर का तनाव रहे और न मन का तनाव रहे। कोई अवरोध न रहे। ऐसी स्थिति में अवस्थित होकर जब सूक्ष्म-तत्त्व का ध्यान किया जाता है तब वह तत्त्व शरीर में प्रविष्ट होकर सक्रिय बन जाता है। जैसे ही ध्यान सघन होता है, एकाग्रता बढ़ती है, तब साधक उस तत्त्व के साथ तन्मय और तद्रूप बन जाता है। यह तन्मय बनने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के आधार पर शक्ति और स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है। शरीर को सर्वथा शून्य बनाकर आरोग्य का ध्यान करते ही समरसी भाव पैदा होता है। उस समय एकरसता और समाधि की स्थिति उपलब्ध होती है और तब वहीं आरोग्य का परिणमन होने लग जाता है। कुछेक वैज्ञानिकों ने परीक्षण के लिए वनस्पति के साथ तादात्म्य स्थापित किया। उनका तदात्म्य इतना गहरा था कि पौधों में जो संवेदन होता, वे उसे पकड़ लेते। संवेदन का तार ऐसा जुड़ा कि पौधों में जो प्रतिक्रियाएं होतीं वे प्रतिक्रियाएं स्वयं में होने लग जाती और जो प्रतिक्रियाएं स्वयं में होतीं वे प्रतिक्रियाएं पौधों में होने लग जातीं। यह शून्यीकरण की प्रक्रिया है। इससे आरोपण हो सकता है। यह मनोविज्ञान का विषय है, आत्मा की वस्तुस्थिति नहीं है। इस पद्धति से आत्मा की सचाई को नहीं जाना जा सकता। यह आरोपण है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है, मानसिक प्रक्षेपण है। जिस प्रकार की मानसिक कल्पना व्यक्ति करता है, एकाग्रता के कारण वह कल्पना प्रकट होते-होते सामने आ जाएगी। यह मात्र मानसिक प्रक्रिया है। इससे आत्मा का कोई पता नहीं चल सकता। जिस व्यक्ति के चित्त में अपने इष्ट के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव है, ध्यान करते-करते वही इष्ट उसी रूप में उसके सामने प्रस्तुत हो जाता है। जिस इष्ट का जिस रूप में ध्यान करेंगे, चित्त को एकाग्र करेंगे और जब वह एकाग्रता एक निश्चित बिन्दु पर पहुंचेगी तब वह प्रतिमूर्ति साकार होकर सामने प्रस्तुत हो जाएगी। मनोविज्ञान की भाषा में यह मानसिक प्रक्षेपण है। इसमें यह पता नहीं चलता कि हमें अपने इष्ट का साक्षात्कार हुआ है। बहुत लोग यह कहते हैं-हमें परमात्मा या गुरु का साक्षात्कार हो गया, हमें अमुक देवी या अमुक देवता का साक्षात्कार हो गया। वह उनका साक्षात्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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