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चैतन्य का अनुभव २७७
न जाने आत्मा को नकारने के कितने-कितने प्रयत्न हुए, कितने ग्रन्थ लिखे गए, नास्तिकता का पुरजोर प्रचार किया गया और यह प्रतिपादित किया गया कि जीवन से परे कुछ नहीं है, फिर भी मनुष्य में आत्म-ज्ञान की जिज्ञासा, आत्म-साक्षात्कार की भावना कभी विनष्ट नहीं हुई। उसकी यह प्रबल भावना सदा जलती रही है और आज भी वह प्रज्वलित है।
प्रेक्षा-ध्यान और समाधि का सारा समारंभ उस आत्म-साक्षात्कार के लिए, चेतन-तत्त्व की उपलब्धि के लिए और अनश्वर तथा अनाकार की आराधना के लिए है।
प्रश्न है-क्या आत्मा को देखा-जाना जा सकता है? क्या चैतन्य का अनुभव किया जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर वही पा सकता है जो स्वयं प्रयोग करता है। आत्म-साक्षात्कार और विचार-ध्यान ___ आत्म-साक्षात्कार की दो पद्धतियां हैं। एक है-सविचार-ध्यान और दूसरी है-निर्विचार-ध्यान।
सबसे पहले हमें श्रुत का सहारा लेना होगा। आगम का सहारा लेना होगा। जिन्हें अतीन्द्रिय ज्ञान उपलब्ध हुआ, उन्होंने अपनी अनुभव की वाणी में जो बताया, उसका सहारा लेना होगा। सबसे पहले साधक अपने आपको इन संस्कारों से भावित करे-'आत्मा' है। वह चैतन्यमय, अनाकार, निर्लेप, शब्दातीत, रूपातीत, गंधातीत, रसातीत और स्पर्शातीत है। वह केवल चैतन्यमय है। सारा चैतन्य ही चैतन्य है। वह एक सूर्य है, ज्योति है, प्रकाशपुंज है। वहां कोई अंधकार नहीं है, कोई तमस् नहीं है। इस भावना से साधक अपने मन को भावित करे। वह यह आरोपण करे-मैं अनाकार हूं। मैं निरंजन हूं। मैं पदार्थ और पुद्गल से परे हूं। मैं अमूर्त हूं। मैं चेतनामय, आनन्दमय और शक्तिमय हूं। मैं शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श से परे हूं। इस भावना से चित्त को भावित कर साधक अपने स्वरूप का ध्यान करता है। वह प्रारंभ करता है श्रुत से, विकल्प से, किन्तु आत्म-स्वरूप से चित्त को भावित कर ऐसा करता है। वह स्वरूप में तन्मय बन जाता है, एकाग्र हो जाता है, विचारों को छोड़ देता है। यह आत्म-साक्षात्कार की, विचार-ध्यान की एक पद्धति है। विचार-ध्यान के द्वारा आत्मा का अनुभव किया जा सकता है। जब तल्लीनता और एकाग्रता बढ़ती है तब जिस स्वरूप की कल्पना की थी वह स्वरूप साक्षात् होने लगता है। द्रष्टा, ध्याता ध्यान में बैठा है। आभास होता है, जैसे सामने ही आत्मा स्थित है या भीतर वैसी ही आत्मा सक्रिय हो रही है। प्रत्यक्षतः साक्षात्कार हो जाता है। इस ध्यान को आज्ञा-विचय-ध्यान कहा जाता है। हमने स्थूल का आलंबन लिया, स्थूल का विचार किया, वह स्थूल हट गया और सूक्ष्म सामने प्रस्तुत हो गया।
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