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________________ २९. चैतन्य का अनुभव प्रेक्षा-ध्यान का प्रयत्न अप्रयत्न का प्रयत्न है, अनायास का आयास है। यह क्यों? यह प्रश्न सहज है। प्रेक्षा-ध्यान में श्वास की प्रेक्षा करते हैं, शरीर और चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा करते हैं, रंगों का ध्यान करते हैं यह सब क्यों? श्वास भी नश्वर है, शरीर भी नश्वर है, चैतन्य केन्द्र भी नश्वर हैं और ये सारे रंग भी नश्वर हैं। क्या इन नश्वर तत्त्वों की उपलब्धि के लिए ही इतना बड़ा समारंभ, इतना बड़ा प्रयत्न और इतना बड़ा आयास किया जा रहा है? इतना समय और शक्ति का दान क्या इन्हीं की उपलब्धि के लिए किया जा रहा है? यह तो वैसे ही एक तुच्छ प्रयत्न होगा, जैसे पहाड़ को खोदा और निकली एक चुहिया। यह आयास बुद्धि-संगत नहीं लगता। प्रेक्षा-ध्यान एक प्रयत्न है, समारंभ है, आयास है। किन्तु यह अप्रयत्न के लिए प्रयत्न है, अनायास के लिए आयास है, सहज के लिए थोड़ा असहज भी है। हमारा ध्येय है अनाकार तक पहुंचना। विज्ञान नहीं मानता कि इस दुनिया में कोई भी पदार्थ अनाकार है। हमारा उद्देश्य है चेतना तक पहुंचना। चेतना को सब स्वीकार करते हैं। कोई भी दर्शन ऐसा नहीं है जो चेतन-तत्त्व को स्वीकार न करता हो। इस स्वीकृति में मतभेद अवश्य है। कुछ मानते हैं कि चेतन तत्त्व है, पर जब तक यह जीवन है, तब तक चेतन का अस्तित्व है। जीवन समाप्त, चेतन भी समाप्त । यदि जीवन के साथ-साथ चेतन भी समाप्त होने वाला है तो उसके साक्षात्कार के लिए इतना प्रयत्न क्यों? नश्वरता की दृष्टि से शरीर और चेतन में अन्तर ही क्या रहा? शरीर भी एक दिन नष्ट होगा और चेतन भी एक दिन नष्ट हो जाएगा। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। जिन लोगों ने चेतन-तत्त्व के विषय में यह धारणा बनाकर मान लिया कि श्वास नश्वर है, शरीर नश्वर है, चैतन्य केन्द्र नश्वर है और रंग नश्वर हैं, उन लोगों ने इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को विस्मृत कर दिया कि इन नश्वर तत्त्वों के पीछे एक अनश्वर तत्त्व भी है। इन सबके नष्ट हो जाने पर भी वह नष्ट नहीं होता। उसी को जानने के लिए यह महान् प्रयत्न किया जाता है। उसे जानने की भावना ही आत्म-जिज्ञासा है। यह मनुष्य की अनादिकालीन जिज्ञासा है। वह चिरकाल से आत्मा को जानने का प्रयत्न करता रहा है, आत्मा के साक्षात्कार का आयास करता रहा है। आत्म-जिज्ञासा एक बलवती जिज्ञासा है, अदम्य जिज्ञासा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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