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२६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
भी स्थान है, गुरु के पथ-दर्शन का भी स्थान है । इस सचाई को बराबर मानते चलें तो ध्यान के साथ-साथ हमारे चित्त की निर्मलता घटित होगी, चित्त की निर्मलता होने पर संभावित दोषों का शोधन करते चले जाएंगे और तब व्यवहार के क्षेत्र में भी जीवन-यात्रा सुखद होती चली जाएगी। उस स्थिति में अध्यात्म की यात्रा निर्विघ्न और निर्बाध बन सकेगी ।
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