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________________ चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा २६३ को, पदार्थ को और व्यक्ति को अंतिम सत्य मान लेता है, त्राण मान लेता है, तब दुःखी होना पड़ता है। यह है अशरण अनुप्रेक्षा। व्यवहार में अनेक पदार्थों को त्राण मानते चलें, किन्तु इस सचाई को न भूलें कि वास्तविकता या अंतिम त्राण अपना ज्ञान, अपना दर्शन, अपना आचरण तथा व्यवहार होता है। दूसरे में त्राण देने की क्षमता नहीं है। एकत्व अनुप्रेक्षा तीसरा सूत्र है-एकत्व अनुप्रेक्षा। सामाजिक प्राणी सहयोग लेता है और सहयोग देता है। वह अकेला जीवन नहीं जी सकता। सबका सहयोग लेता है तो समाज चलता है। सामाजिक जीवन जीते हुए भी लोग इस सचाई को भूल जाते हैं कि अन्ततः व्यक्ति अकेला है। ध्यान करने वाले साधक को इस सचाई से बहुत परिचित रहना है। इस अनुप्रेक्षा को बार-बार दोहराना है। जिसका यह आलंबन पुष्ट हो जाता है-आत्मा अकेली है, व्यक्ति अकेला है-उसे सहयोग न मिलने पर भी कोई कष्ट नहीं होगा, क्योंकि उसका चित्त इस भावना से पूर्णरूपेण भावित है। वह परिस्थिति के आने पर भी टूटेगा नहीं। यदि यह भावना चित्त में स्थित नहीं है, और व्यक्ति सुनता है कि सबने उसका साथ छोड़ दिया है, तो वह विक्षिप्त बन जाएगा, पागल हो जाएगा। ऐसा इसलिए होता है कि वह व्यक्ति अटल सचाई को विस्मृत किए चलता है। वह उस सचाई का पालन नहीं करता, अनुभव नहीं करता। यदि चित्त सचाई से भावित रहे तो ऐसी घटना घटने पर आदमी विचलित नहीं होता, वह संभला रहता है। जब सब साथ कार्य करते थे, वह आश्चर्य की बात नहीं है। अब सब बिछुड़ गए या सहयोग खींच लिया, यह भी आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसी घटनाएं प्रतिदिन घटती रहती हैं, फिर भी आदमी आंख मूंदकर सचाई की अवहेलना करता जा रहा है। 'मैं अकेला हूं'-यह है एकत्व अनुप्रेक्षा। संसार अनुप्रेक्षा ___ चौथा सूत्र है-संसार अनुप्रेक्षा । इसका अर्थ है-संसार की नाना परिणतियों को जानना, विधि परिवर्तनों को जानना। जन्म और मृत्यु के चक्र से बराबर परिचित रहना। चित्त-शुद्धि की प्रक्रिया : अनुप्रेक्षा __ अनुप्रेक्षाएं अनेक हैं। मैंने चार मुख्य अनुप्रेक्षाओं की चर्चा की है। जो व्यक्ति ध्यान के साथ-साथ इन अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करता है, उसके चित्त पर कोई मूर्छा नहीं जमती, मैल नहीं जमता। कभी कुछ जमता है तो अनुप्रेक्षा से उसकी धुलाई हो जाती है। चित्त-शुद्धि के लिए अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करना जरूरी है। स्वाध्याय भी बहुत अपेक्षित है। प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया में स्वाध्याय का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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