SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा २५७ उतनी आज उभर रही है। काम जितना पहले नहीं सताता था, उतना आज सता रहा है। चले थे कुछ और करने, हुआ कुछ और ही। ऐसा होता है। इसका कारण है। हमारे शरीर की संरचना में शक्ति केन्द्र और काम-केन्द्र दोनों सटे हुए हैं। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। जब ध्यान द्वारा ऊर्जा जागती है तब साथ-साथ में काम-केन्द्र भी सक्रिय हो जाता है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जिसने शक्ति को जगाने का प्रयत्न किया हो और उसका काम-केन्द्र सक्रिय न हुआ हो। शक्ति केन्द्र की सक्रियता के साथ-साथ काम-केन्द्र भी सक्रिय होगा। वह जब सक्रिय होगा तो काम-वासना का तूफान आएगा। बिना गुरु के पथ-दर्शन के इस तूफान को शान्त नहीं किया जा सकता। स्वाध्याय के बिना यह शान्त नहीं हो सकता। जो व्यक्ति स्वाध्याय करता है, अध्यात्म के रहस्यों को जानता है, वह जान लेता है कि किस यात्रा-पथ पर क्या स्थिति बनेगी। यात्रा-पथ में कितने मोड़ हैं, वहां कितना रुकना है, कैसे चलना है, यह सब उसे ज्ञात हो जाता है। चले और पहुंच गए, ऐसा नहीं होता। पथ की सारी जानकारी गुरु से प्राप्त की जा सकती है। गुरु का पथ-दर्शन भी स्वाध्याय है। पढ़ना-सुनना भी स्वाध्याय है, समाधान पाना या अनुचिन्तन करना भी स्वाध्याय है। गुरु सुलभ हों तो पथ-दर्शन लें और यदि वे सुलभ न हों तो पुस्तकों के द्वारा भी मार्ग-दर्शन उपलब्ध हो सकता है। ताप, शोष और भेद ध्यान करते समय तीन बातें होती हैं-ताप, शोष और भेद। जैसे सोने को निर्मल बनाने के लिए उसे तपाया जाता है, उसका शोषण किया जाता है, शोधन किया जाता जाता है और विदारण किया जाता है, वैसे ही ध्यान साधक को इन तीनों अवस्थाओं से गुजरना होता है। ध्यान करने वाले व्यक्ति में ताप बढ़ता है, उसका शरीर तप जाता है। ध्यान करते समय कभी-कभी इतनी गर्मी बढ़ जाती है कि सिर फटने लगता है, सारे शरीर से ऊष्मा की ऊर्मियां निकलती रहती हैं। शरीर जल उठता है। ध्यान करने वाले के शरीर का शोष होता है। उसका शरीर थक जाता है। चर्बी घट जाती है। चर्बी को घटाने का सुन्दर उपाय है-ध्यान। ध्यान करने वाले व्यक्ति के शरीर का विदारण होता है, जमी हुई ग्रन्थियों का भेदन होता है, ग्रन्थियां खुल जाती हैं। जिस प्रकार स्थूल शरीर में ये तीनों अवस्थाएं घटित होती हैं वैसे ही कर्म-शरीर में भी ये तीनों अवस्थाएं घटित होती हैं। कर्म-शरीर का ताप होता है। कर्म-शरीर का शोष होता है। कर्म-शरीर का भेदन होता है। पशु अपने स्थान पर इतना भयंकर नहीं होता। उसको छेड़ने से उसका भयंकर रूप प्रत्यक्ष हो जाता है। सिंह अपनी गुफा में इतना भयंकर नहीं होता जितना वह छेड़ने से होता है। कर्म-शरीर की भी यही बात है। वह भीतर पड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy