SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ अप्पाणं सरणं गच्छामि लिए स्वाध्याय भी बहुत जरूरी है और ध्यान भी बहुत जरूरी है। एक समस्या पर ध्यान केन्द्रित करना विचय-ध्यान की प्रक्रिया है। समस्या के जो पर्याय अज्ञात हैं, जिनकी हमें कोई जानकारी नहीं है, अज्ञात को ज्ञात करना है, अनुपलब्ध को उपलब्ध करना है, सत्य का अनुसंधान करना है तो उस बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करना हागा। जब चेतना की धारा एक दिशागामी, एक लक्ष्यगामी और एक विचारगामी होती है, तब ऐसा क्षण आता है कि समाधान मिल जाता है। समस्या सुलझ जाती है, अज्ञात ज्ञात हो जाता है। स्वाध्याय : पथ-दर्शन जब तक ध्यान की स्थिति नहीं बनती, तब तक स्वाध्याय के द्वारा भी समस्या को सुलझाया जा सकता है, चिन्तन और विचारों के द्वारा भी समस्या को सुलझाया जा सकता है। बहुत बार ऐसा होता है कि ध्यान-काल में भी समस्याएं पैदा होती हैं और ध्यान-साधक के सामने अनेक समस्याएं उपस्थित हो जाती हैं। यदि स्वाध्याय का आलंबन न हो तो व्यक्ति उलझ जाता है। यदि गुरु का मार्गदर्शन न हो तो वह भटक जाता है। यदि ये दोनों बातें नहीं होती हैं तो ध्यान का मार्ग बहुत कंटीला है। ध्यान-साधक यह मानकर चलता है कि ध्यान का मार्ग फूलों की सैर का मार्ग है। किन्तु उचित मार्ग दर्शन के बिना उसके पैर कांटों से बिंध जाते हैं। फूल हाथ नहीं लगते, कांटे पहले ही चुभ जाते हैं। ध्यान-साधक के लिए पथ-दर्शन अपेक्षित होता है। स्वाध्याय पथ-दर्शन करने में क्षम है। वह स्वयं पथ-दर्शक है। अध्ययन करना, जिज्ञासा करना, पुनरावर्तन करना, अनुप्रेक्षा करना, धर्म-कथा करना-ये सब स्वाध्याय के अंग हैं। मंत्र का जप करना भी स्वाध्याय है और अनुचिंतन करना भी स्वाध्याय ध्यान में उभरती समस्याएं : निराकरण का उपाय कुछेक व्यक्ति कहते हैं-ध्यान करने वाले को ग्रंथ नहीं पढ़ने चाहिए, मंत्र का जप नहीं करना चाहिए। संकल्प-शक्ति और प्राण-शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए, चिंतन-मनन नहीं करना चाहिए। ध्यान-साधक जितना निर्विकल्प और निर्विचार रहे, यह अच्छा है। इसका कोई विरोध नहीं कर सकता। किन्तु निर्विचारता की उपलब्धि प्रारंभ में ही नहीं हो जाती। यह सहज मार्ग नहीं है। बहुत कंटीला पथ है। ध्यान-साधक ध्यान प्रारंभ करता है। ध्यान के द्वारा तैजस-शक्ति जागती है, हठयोग की भाषा में कुंडलिनी का जागरण होता है, ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा होती है तब वासना का प्रबल उभार आता है, विकल्पों का ज्वार आता है और तब साधक सोचता है, चला था ध्यान करने, मन को स्थिर करने, आत्मा को उपलब्ध करने, किन्तु जितनी वासना पहले नहीं थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy