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________________ २५८ अप्पाणं सरणं गच्छामि है और अपने ढंग से कार्य कर रहा है। न उसमें कोई उफान आता है और न कोई तूफान आता है। किन्तु जब ध्यान के द्वारा उसके साथ छेड़छाड़ होती है तब वह रौद्र रूप धारण कर लेता है। उसमें भयंकर तूफान आता है, बवंडर उठते हैं। यदि उस समय गुरु का पथ-दर्शन नहीं मिलता, स्वाध्याय का सम्बल नहीं मिलता तो व्यक्ति निराश हो जाता है, टूट जाता है। वह उन स्थितियों को संभाल नहीं पाता। ध्यान करने वाले व्यक्ति में जब ऊर्जा जागती है तब क्रोध भी बढ़ जाता है। शक्ति का कार्य है उत्तेजना पैदा करना। आग से पकाया भी जा सकता है और जलाया भी जा सकता है। अग्नि जलाती है। उसमें यह विवेक नहीं होता कि किसको जलाना है और किसको नहीं जलाना है। जो भी सामने आता है, उसे वह जलाकर राख कर देती है। जब वह चूल्हे में सीमित होती है तो पका सकती है। जब वह सीमा का अतिक्रमण कर फैलती है तब सब कुछ भस्मसात् कर देती है। हमारे भीतर की ऊर्जा भयंकर आग है। शरीर में तैजस की इतनी बड़ी और भयंकर आग है कि अन्यत्र वह दुर्लभ है। जिस साधक को तेजोलब्धि प्राप्त हो जाती है, उसमें इतनी क्षमता विकसित हो जाती है कि वह एक क्षण में हजारों मील के भू-भाग को भस्म कर सकता है। एक अणु-विस्फोट से अधिक विनाश करने में वह सक्षम हो जाता है। जब यह शक्ति जागती है और यदि उसे सही रास्ता मिल जाए, एक चूल्हा मिल जाए, नियामक तत्त्व मिल जाए तो वह हमारी अन्यान्य शक्तियों के संवर्धन में हेतुभूत हो सकती है। यदि ऐसा नहीं होता तो वह उसी व्यक्ति को जलाने लग जाती है। जब तैजस-शक्ति का जागरण होता है तब भयंकर ताप पैदा होता है। यदि साधक उस ताप को सहने में सक्षम नहीं होता तो वह पागल हो जाता है। यह शक्ति बहुत खतरनाक होती है। इससे क्रोध बढ़ जाता है। शाप देने की शक्ति हाथ में आ जाती है। ध्यान करने वाले कुछ तपस्वी ऐसे होते हैं, जिनकी शक्ति जाग जाती है, क्रोध बढ़ जाता है, पर उन्हें क्रोध के उपशमन का उपाय हाथ नहीं लगता तब उनकी शक्ति दूसरों का अनिष्ट करने में, शाप देने में खपती स्वाध्याय के द्वारा यह जाना जा सकता है कि शक्ति-जागरण होने पर किस प्रकार की अनुप्रेक्षाएं करनी चाहिए, क्या-क्या करना चाहिए। जब शक्ति के जागरण में अनुप्रेक्षाओं का सहारा लिया जाता है तब खतरा नहीं होता, कोई कठिनाई नहीं होती। साधक भयंकर से भयंकर स्थिति सामने होने पर भी शक्ति का सन्तुलन बनाए रखता है। वह उत्तेजित नहीं होता। किसी को शाप नहीं देता। जिन साधकों ने ध्यान के द्वारा साधना के रहस्यों को उपलब्ध किया, साधना की सचाइयों को उपलब्ध हो गए, उनके सामने भयानक स्थितियां आयीं, पर उनमें प्रतिकार की भावना जागृत नहीं हुई। वे चाहते तो उन स्थितियों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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