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२५० अप्पाणं सरणं गच्छामि
में पता लगने लग जाता है। कायोत्सर्ग जैसे-जैसे विकसित होता है, जैसे-जैसे शरीर की स्थिरता सधती है वैसे-वैसे जागरूकता बढ़ती जाती है, चेतना निर्मल होती जाती है और इस स्थूल शरीर की सीमा का अतिक्रमण कर सूक्ष्म शरीर की घटनाओं का भी पता लगने लग जाता है ।
आभामण्डल : एक विज्ञान
आभामंडल का दर्शन होता है। हर प्राणी के आस-पास एक आभामंडल होता है, एक रश्मियों का घेरा होता है कवच जैसा। पूरे शरीर के बाहर फैला हुआ। किसी का तीन फुट का, किसी का पांच फुट का और किसी का सात फुट का । हर व्यक्ति का एक घेरा होता है। किसी का बहुत सुन्दर होता है, किसी का बहुत भद्दा होता है। किसी का बड़ा आकर्षक होता है, किसी का ग्लानि पैदा करने वाला होता है। किसी का आभामंडल पास में आने वाले व्यक्ति को शान्ति देता है और किसी का आभामंडल पास में आने वाले व्यक्ति को चिन्ता, दुर्मनस्कता से भर देता है । आभामंडल लक्षण है हमारी जीवट का । आभामंडल लक्षण है हमारी भावधारा का । आभामंडल लक्षण है हमारी चैतन्य प्रतिक्रियाओं का । आभामंडल का दर्शन हर किसी को नहीं होता । शरीर की स्थिरता की साधना करने वाले व्यक्ति को होने लगता है । परामनोविज्ञान की खोज करने वाले वैज्ञानिकों ने आज ऐसे कैमरे बना लिये हैं जिनके द्वारा आभामंडल के फोटो लिये जा सकते हैं । अमेरिका में कई संस्थान हैं, रूस में कई संस्थान हैं जिन्होंने आभामंडल के फोटो लिये हैं, प्रकाशित किये हैं । आभामंडल तैजस-शरीर का विकिरण है, सूक्ष्म शरीर का विकिरण है। दुनिया का हर पदार्थ चेतन और अचेतन अपने आकार में रश्मियों का विकिरण करता है। कोई भी पदार्थ, कोई भी अस्तित्व दुनिया का ऐसा नहीं है जिससे रश्मियों का विकिरण न होता हो । प्रत्येक पदार्थ से अपने आकार की रश्मियों का विकिरण होता है । इसीलिए वस्तु या व्यक्ति के चले जाने के दो घंटे बाद भी उसका फोटो लिया जा सकता है। व्यक्ति चले गए, उनके आभामंडल से विकिरण होने वाले, फैलने वाले परमाणु उसी आकार में विद्यमान हैं। यदि उतना सेन्सिटिव, संवेदनशील कैमरा हो तो दो घंटे बाद भी उन सबका फोटो लिया जा सकता है।
हमारे शरीर से भी विकिरण होते हैं और फैलते हैं, दूसरों को प्रभावित करते हैं । कायोत्सर्ग की प्रगाढ़ अवस्था में आभामंडल का दर्शन होने लगता है । प्रश्न होता है क्या आभामंडल देखा जा सकता है ? बहुत अच्छी तरह से देखा जा सकता है। ध्यान की स्थिति में दिखाई देता है। अचानक कभी-कभी ऐसा होता है कि ध्यान करते-करते शरीर तो नहीं किन्तु पूरे शरीर के आकार का एक विद्युत् का मंडल सामने दीखने लगता है। ऐसा लगता है कि जैसे सामने
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