________________
चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग २४६ विचार शान्त। हर कोई व्यक्ति प्रयोग कर सकता है। यह कोई मानने की बात नहीं है, अनुभव की बात है, जानने की बात है। जब कभी ज्यादा विचार आए, ज्यादा चंचलता बढ़े, ज्यादा विकल्प सताएं, आप शांत बैठे, शान्त लेट जाएं। चित्त को बिलकुल स्थिर, शान्त कर विचारों को देखने लग जाएं। आपको आश्चर्य होगा कि विचार कहां चले गए? विचारों का तांता लगा था, एक के बाद एक जो विचार और कल्पनाएं आ रही थीं, वे तिरोहित हो गयीं। स्वयं ढूंढ़ना पड़ेगा आपको कि विचार कहां चले गए? पता ही नहीं चलेगा। कायोत्सर्ग : अध्यात्म का पहला नियम
अध्यात्म की साधना करने वाले व्यक्ति को अध्यात्म के नियमों से परिचित होना जरूरी है। सबसे पहला और सबसे बड़ा नियम है-शरीर की स्थिरता, कायोत्सर्ग। कायोत्सर्ग होता है, श्वास-दर्शन होता है। कायोत्सर्ग होता है, शरीर-प्रेक्षा अपने-आप हो जाती है। शरीर में होने वाले कम्पन अपने आप प्रकट होने लगते हैं। कायोत्सर्ग होता है, विचार-दर्शन होता है, विचार अपने आप दीखने लग जाते हैं। विचार की तरंग उठ रही है। देखा और शान्त । दूध उफन रहा है, और कुछ करने की जरूरत नहीं, थोड़ा-सा पानी का छींटा मिला और दूध शान्त । विचार का उफान है, उसके लिए और कुछ करने की जरूरत नहीं, केवल चित्त वहां गया, चेतना गयी, चेतना ने देखा और ऐसा छींटा लगा कि विचार तत्काल शान्त । वेदना का दर्शन होता है। शरीर में जो भी पीड़ा होती है, कष्ट होता है, चंचलता में पता नहीं चलता। जब स्थिरता होती है तो तत्काल पता चलता है कि कहां वेदना हो रही है? कहां पीड़ा हो रही है? वेदना का पता चलता है, कुछ वेदनाएं प्रकट होती हैं, कुछ वेदनाएं अज्ञात रूप में पलती हैं। बहुत लोगों को बीमारी का पता नहीं चलता। जब बीमारी पल जाती है
और जब भयंकर रूप लेती है तब पता चलता है कि कोई बीमारी है। बीमारी का पहले पता चल जाए तो शायद इलाज भी हो जाए। अन्तर्-व्रण, बाहर का नहीं, भीतर का व्रण होता है। पहले पता नहीं चलता। वर्षों तक बीमारी पलती चली जाती है और जब अगले स्टेज में चली जाती है तब पता चलता है। तब वह बीमारी असाध्य जैसी बन जाती है। न जाने हमारी कितनी बीमारियां, कितनी वेदनाएं और कितनी पीड़ाएं ऐसी हैं जिनका पहले कोई पता नहीं चलता। चंचलता में कोई पता नहीं चलता। शरीर की स्थिरता जब सधती है, शरीर के हर अवयव की स्थिरता सधती है, प्रत्येक कोशिका की स्थिरता का अभ्यास होता है तो फिर किस कोशिका में कहां क्या हो रहा है, घटना का पता लगने लग जाता है। नाड़ी-संस्थान में, ग्रन्थि-संस्थान में जो कुछ हो रहा है, विद्युत्-प्रवाह की जो गति हो रही है, हमारे शरीर के रसायन किस प्रकार अपने विविध परिणमन कर रहे हैं और किस प्रकार के रसायन बन रहे हैं उन सब घटनाओं का कायोत्सर्ग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org