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________________ २४८ अप्पाणं सरणं गच्छामि श्वास की स्थिरता, शरीर की स्थिरता पर निर्भर है। शरीर जितना चंचल होता है, श्वास की गति बढ़ती जाती है, संख्या बढ़ती जाती है, श्वास छोटा होता चला जाता है। एक मिनट में १६ श्वास लेने वाला व्यक्ति जब शरीर की चंचलता को बढ़ाता है तो श्वास की संख्या भी २०, २५, ३० आगे से आगे बढ़ती चली जाती है। ६०,७० तक भी चली जाती है। शरीर शान्त हुआ, श्वास की संख्या कम होने लग जाएगी, लम्बाई बढ़ जाएगी, श्वास अपने आप मन्द हो जाएगा। यह श्वास की मन्दता का नियम स्थिरता के साथ जुड़ा हुआ है। अध्यात्म और व्यवहार के नियम अध्यात्म की साधना करने वाले व्यक्ति को, समाधि और ध्यान की साधना करने वाले व्यक्ति को अध्यात्म के नियमों का जानना जरूरी है। जो अध्यात्म के नियमों को नहीं जानता वह अध्यात्म की साधना ही नहीं कर सकता। हर एक के अपने नियम होते हैं। व्यवहार के अपने नियम होते हैं, अध्यात्म के अपने नियम होते हैं। परिवार के अपने नियम होते हैं, समाज की व्यवस्था के अपने नियम होते हैं। जो जहां का नियम है, वहां का नियम जानना जरूरी है। जो वहां के नियमों को नहीं जानता, वह उस दिशा में विकास नहीं कर सकता। जो स्थल-यात्रा का नियम है, वह वायु-यात्रा का नहीं हो सकता। वायुयान में बैठा आदमी कितनी ही दौड़ लगाए, जल्दी नहीं पहुंचेगा। वायुयान पहुंचेगा तभी पहुंच पाएगा, पहले नहीं पहुंच पाएगा। चंचलता का अपना नियम है और स्थिरता का अपना नियम है। दमन नहीं, दर्शन साधना करने वाला व्यक्ति यदि शरीर की चंचलता के नियमों से परिचित होता है, शरीर की स्थिरता के नियमों से परिचित नहीं होता है तो समस्या को सुलझा नहीं पाता, मन में विकल्प उठता है, विचार उठता है और वह विचारों को दबाने का प्रयत्न करता है और विचार फुफकारने लग जाता है। दबाने का प्रयत्न करोगे, विचार और उखड़ेगा, और उभरेगा, विकल्प आने लगेंगे। विचार को जैसे-जैसे दबाया जाता है, विचार भी वैसे-वैसे प्रतिरोध करना शुरू कर देता है और सामने आकर डट जाता है। ___ दमन का नियम राज्य व्यवस्था का नियम है, चंचलता का नियम है। किन्तु स्थिरता का यह नियम नहीं हो सकता। दबाने की कोई जरूरत नहीं, विचार को रोकने के लिए प्रयत्न करने की कोई जरूरत नहीं। शरीर को अधिक-से-अधिक स्थिर करें, विचार अपने आप दीखने लग जाएगा। विचार-दर्शन होगा। विचार दर्शन हुआ और विचार शान्त । दबाओगे, विचार उखड़ेगा, विचार और ज्यादा आएगा। पारदर्शन हुआ, विचार को देखा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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