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________________ चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग २४७ 1 को भाषा के रूप में बदलता है। जब वचन के परमाणुओं का विसर्जन होता है, विस्फोट होता है, तब भाषा शब्द में सुनाई देती है । उस क्षण का नाम 'वचन' है । शेष सारा काम शरीर को ही करना पड़ता है । सारी की सारी वचन की प्रक्रिया शरीर निभाता है, पूरा उत्तरदायित्व शरीर का है। इसलिए वचन को शरीर से सर्वथा पृथक नहीं किया जा सकता । शरीर का एक हिस्सा है - वचन । मन को भी शरीर से पृथक् नहीं जा सकता । शरीर का एक भाग है - मन । मन के परमाणुओं को शरीर ग्रहण करता है । मन के परमाणुओं को चिन्तन के रूप में शरीर बदलता है। केवल मानसिक परमाणुओं का विसर्जन होता है, उस क्षण का नाम है - मन, और सारा का सारा दायित्व यह शरीर निभाता है । सारा चिन्तन का भार बोलने का सारा भार, श्वास के परमाणुओं को लेने का सारा भार यह शरीर निभाता है। वास्तव में एक ही तत्त्व है - शरीर । श्वास, मन, वचन - ये सारे के सारे शरीर के ही एक भाग मात्र हैं । इनका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । ऐसा नहीं हो सकता कि शरीर के बिना कोई श्वास ले, ऐसा नहीं हो सकता कि शरीर के बिना कोई बोले और ऐसा भी नहीं हो सकता कि शरीर के बिना कोई चिन्तन करे । अशरीरी चिन्तन, अशरीरी वाणी और अशरीरी श्वास कभी भी उपलब्ध नहीं होगा। इस परम सत्य को जान लेने के बाद उस उत्तर के लिए कोई जिज्ञासा शेष नहीं रहेगी कि चित्त की शुद्धि के लिए शरीर की स्थिरता क्यों जरूरी है? शरीर चंचल होता है तो इन्द्रिय-चेतना बाहर जाती है, शरीर चंचल होता है तो मन की चेतना बाहर जाती है । शरीर जैसे ही स्थिर हुआ, निश्चल हुआ, शान्त हुआ, इन्द्रिय-चेतना लौट आती है, मानसिक चेतना भी लौट आती है । प्रतिक्रमण शुरू हो जाता है । चेतना का बाहर जाना अतिक्रमण है और चेतना का फिर अपने भीतर आ जाना प्रतिक्रमण है । प्रतिक्रमण अपने आप शुरू हो जाता है । चेतना के प्रतिक्रमण के लाभ 1 हम जब प्रतिक्रमण की स्थिति में होते हैं, चेतना तब भीतर लौटती है और बाहर से चेतना का सम्पर्क टूटता है । चित्त जब भीतर ही देखने लगता है, अपनी सारी शक्ति का नियोजन भीतर होता है, उस समय सबसे पहले श्वास का दर्शन होता है। सहजभाव से श्वास-प्रेक्षा हो जाती है। जरूरत नहीं सुझाव की । कुछ कहने की जरूरत नहीं । चेतना भीतर लौटी, पहला कार्य होगा - श्वास- दर्शन । अपने आप पता चलेगा कि इस शरीर के भीतर एक घटना घट रही है। पहली घटना - शरीर स्थिर, शान्त, किन्तु श्वास चल रहा है । बहुत मन्द गति से चल रहा है। दीर्घ श्वास अपने आप हो जाएगा। दीर्घ श्वास, मन्द-श्वास, यह सहज नियम है शरीर का । जब शरीर की चंचलता होगी, श्वास छोटा होगा । शरीर की स्थिरता होगी, श्वास लंबा हो जाएगा, दीर्घ हो जाएगा, मन्द हो जाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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