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२६. चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग
एक साधक ने पूछा-मानसिक शान्ति का सबसे बड़ा उपाय क्या है? मैंने कहा-चित्त-समाधि। फिर प्रश्न हुआ कि चित्त-समाधि का सबसे बड़ा उपाय क्या है? उत्तर दिया-चित्त की निर्मलता होती है तो चित्त की समाधि होती है। समाधि होती है तो मन की शान्ति होती है। प्रश्न आगे बढ़ा। चित्त की शुद्धि का सबसे बड़ा सूत्र क्या है? उत्तर मिला-शरीर की स्थिरता। शरीर जितना स्थिर होता है, उतना ही चित्त को समाधान मिलता है, चित्त शुद्ध होता है, चित्त की मलिनता समाप्त होती है। चित्त की शुद्धि का सबसे बड़ा सूत्र है-शरीर की स्थिरता। चित्त की अशुद्धि का सबसे बड़ा कारण है-शरीर की चंचलता। समझने में कठिनाई होगी। पूछने वाले ने चित्त की बात पूछी और मैंने शरीर की बात कही। तर्कसंगत नहीं लगता। चित्त का प्रश्न है तो उत्तर भी चित्त का होना चाहिए। प्रश्न है चित्त का और उत्तर दिया गया शरीर का। चित्त और शरीर का क्या सम्बन्ध? कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता। बड़ा अजीब-सा लगता है यह सम्बन्ध । साधना की सीमा में आगे बढ़ने पर हम स्वीकार करेंगे कि शरीर की स्थिरता हुए बिना चित्त की स्थिरता नहीं होती। शरीर की स्थिरता हुए बिना श्वास शान्त नहीं होता, मौन नहीं होता, मन शांत नहीं होता, स्मृतियां शान्त नहीं होती, कल्पनाएं समाप्त नहीं होती, विचार का चक्र रुकता नहीं। इसलिए सबसे पहले आवश्यक है-कायोत्सर्ग, कायगुप्ति, कायसंवर। कायसवर होता है, तो अनायास सारी बातें हो जाती हैं। काया का संयम होता है, साधना के लिए अगले चरण अपने आप आगे बढ़ जाते हैं। यदि काया का संयम नहीं होता, काया की चंचलता नहीं मिटती तो कुछ भी नहीं होता। चंचलता का चौराहा
कर्म-शरीर ने अपने अस्तित्व की सुरक्षा की व्यवस्था कर रखी है। हर कोई करता है अपने अस्तित्व की सुरक्षा। कोई भी पदार्थ या कोई भी तत्त्व दुनिया में ऐसा नहीं जो अपने अस्तित्व की सुरक्षा न करे। सबसे पहला प्रश्न है, अस्तित्व की सुरक्षा। हमारा एक शरीर है, अतिसूक्ष्म-शरीर, कर्म-शरीर, जो हमारे समूचे तन्त्र को संचालित कर रहा है, जो आत्मा और पुद्गल के साथ सम्बन्ध बनाए रख रहा है। कर्म-शरीर को कब इष्ट होगा यह कि आत्मा मुक्त हो जाए और उसके चंगुल से छूट जाए। कभी इष्ट नहीं है। एक बार जो जिसको अपने चंगुल में फंसा लेता है, वह नहीं चाहता कि वह छूट जाए। वह उसको अपने अधीन
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