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चित्त-शुद्धि और कायोत्सर्ग २४५
ही रखना चाहता है। शरीर चेतन को अपनी अधीनता में रखना चाहता है। जो तत्त्व कर्म की अधीनता में आ जाए, पुद्गल की अधीनता में आ जाए और वह सहसा उसे छोड़ दे, यह कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती। अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए, चेतन को अपने शिकंजे में जकड़े रखने के लिए एक व्यवस्था है उसकी। उस व्यवस्था का सबसे बड़ा सूत्र, सबसे बड़ा रहस्य है-चंचलता। यह एक ऐसा जाल है, जिसमें सब कुछ छिप जाता है। इतनी चंचलता, इतनी तरंगें, इतनी ऊर्मियां आ जाती हैं कि कुछ पता ही नहीं चलता। चंचलता नहीं होती तो आत्मा कभी अपने स्वरूप में चला जाता। कोई सन्देह नहीं। किन्तु एक चंचलता के कारण वह अपने स्वरूप से भाग रहा है। चंचलता इसलिए कि अज्ञान बना रहे, जिससे चेतन को अपने अस्तित्व का पता न चले। यदि चंचलता नहीं होती तो यह प्रश्न नहीं होता। एक आत्मवान् पुरुष के सामने यह प्रश्न नहीं होता कि आत्मा है या नहीं। एक चैतन्यवान् पुरुष के सामने यह प्रश्न ही नहीं होता कि आत्मा स्वतन्त्र है या नहीं। आत्मा के बारे में सन्देह, स्वतन्त्र चैतन्य के बारे में सन्देह, त्रैकालिक अस्तित्व के बारे में सन्देह इसीलिए है कि चंचलता विद्यमान है। चंचलता है इसीलिए इतने विकल्प पैदा होते हैं, इतने तर्क पैदा होते हैं। उन विकल्पों के अंधकार में, उन तर्कों के आवरण में, अस्तित्व का प्रश्न धुंधला हो जाता है और व्यक्ति के मन में सन्देह पैदा हो जाते हैं। यदि यह बुद्धि का व्यायाम नहीं होता, यदि यह तर्क नहीं होता और इन सबको संचालित करने वाली यह चंचलता नहीं होती तो अस्तित्व के बारे में कभी सन्देह पैदा नहीं होता। __ अधिकारी ने कर्मचारी से कहा-तुम कार्यालय के समय हजामत करते हो और घंटा-भर लगा देते हो। अच्छा नहीं है, ऐसा नहीं होना चाहिए। केश कटाना हो तो दूसरे समय में कटाओ। कार्यालय के समय में ऐसा नहीं करना है।
कर्मचारी बोला-महाशय! क्या कार्यालय के समय केश बढ़ते नहीं हैं? यदि बढ़ते हैं तो फिर कटाने में क्यों आपत्ति होनी चाहिए?
तर्क वास्तविकता पर पर्दा डाल देता है, सचाई को आवृत कर देता है। मनुष्य के मन में ऐसा विकल्प उठता है, सत्य तिरोहित हो जाता है, पर्दे के पीछे चला जाता है। इस मन की चंचलता के कारण यह घटना घटित होती है, अपने अस्तित्व का व्यक्ति को पता नहीं चलता। चंचलता का एक काम यह है कि आदमी को अपने अस्तित्व का पता न चले, अज्ञान सदा बना रहे। चंचलता का दूसरा काम
चंचलता का दूसरा काम है-अपने दुःख का पता न चले। दुःख है पर चंचलता के कारण उसका पता नहीं चलता। आदमी मानता नहीं कि दुःख है। 'दुःख है' यह कहता है। दुःख को भोगता है, दुःख पाता है, अनुभव करता
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