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चित्त-शुद्धि और शरीर-प्रेक्षा २४३
लगता है कि मस्तिष्क बोझिल बना हुआ है। उठता है तो लगता है कि बिलकुल हल्का, भार-शून्य, तनाव-मुक्त हो गया है। तात्कालिक परिणाम और तात्कालिक लाभ होता है।
शरीर-प्रेक्षा का मूल्य इसलिए है कि यह वर्तमान में लाभ का अनुभव कराता है। इससे हमारी चेतना का जागरण होता है, निर्मलता बढ़ती है, आनन्द का स्रोत फूटता है और निरिता का, हल्केपन का अनुभव होता है। इसीलिए साधक के लिए, जो आत्मा को उपलब्ध होना चाहता है, श्वास की साधना, श्वास के साथ-साथ प्राण की साधना और प्राण की साधना के साथ-साथ समूचे शरीर की साधना करनी नितान्त आवश्यक है।
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