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२४२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
शरीर-प्रेक्षा करने वाला केवल आध्यात्मिक प्रयोग ही नहीं कर रहा है, साथ-साथ प्राण - चिकित्सा का प्रयोग भी कर रहा है । बीमारियों की चिकित्सा कर रहा है 1 आज करो, आज लाभ
आत्मा को उपलब्ध करने की, चैतन्य - केन्द्रों को निर्मल बनाने की प्रेरणा न जाने कब होगी, किन्तु जब यह पता चलता है कि शरीर को भी लाभ होता है, आदमी में तत्काल आकर्षण पैदा हो जाता है । मन को लाभ होता है तो बड़ा आकर्षण होता है । तत्काल लाभ की बात बहुत आकर्षित करती है । मैं तो यह मानता हूं कि धर्म परलोक की साधना का तत्त्व नहीं है । जिन लोगों ने धर्म को परलोक के साथ जोड़ दिया, उन्होंने धर्म की असामयिक हत्या कर दी। बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई । परलोक का आकर्षण कब पैदा होगा? आदमी सोचता है कि धर्म से यदि परलोक ही सुधरेगा तो अभी क्यों करें? बूढ़े बनेंगे तब करेंगे। मरे बिना तो परलोक में जाएंगे नहीं । बूढ़े होने के बाद मरेंगे, अतः धर्म अन्तिम समय में कर लेंगे, परलोक सुधर जाएगा। ऐसी बड़ी भ्रान्ति घर कर गई और आदमी धर्म से विमुख हो गया ।
धर्म का तत्त्व है कि आज करो, आज लाभ होगा, जिस क्षण में करो, उसी क्षण में लाभ होगा। आचार्य भिक्षु का एक वचन साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है - वर्तमान में हुवे तिकोइज खरो ।
कितना बड़ा सूत्र दिया है। आगे वह क्या करेगा, पीछे क्या किया, हमें इससे कोई मतलब नहीं। वह वर्तमान में क्या कर रहा है, वह देखो ।
प्रश्न हुआ कि साधु है, आज हम साधु को वन्दना कर रहे हैं। हो सकता है कि कल वह भ्रष्ट हो जाए। एक कोई डाकू है, बुरा आदमी है, हम उसे बुरा मान रहे हैं, कल न जाने वह क्या हो जाए ? आचार्य भिक्षु ने कहा- अतीत को छोड़ो, भविष्य को छोड़ो। क्या होगा, वह व्यक्ति अपना जाने । वर्तमान में क्या कर रहा है, बस उसी पर सारा निर्णय होगा । आधार केवल वर्तमान बनता है । जिस साधना के द्वारा, जिस आराधना के द्वारा, जिस ध्यान के द्वारा वर्तमान का क्षण आनन्दमय, चेतनामय और शक्तिमय नहीं होता वह धर्म नहीं, धर्म के नाम पर कोई दूसरा ही तत्त्व है। सचमुच, धर्म के द्वारा हमारी वर्तमान की समस्या सुधरनी चाहिए, वर्तमान बदलना चाहिए। यह ध्यान की साधना, शरीर - प्रेक्षा की साधना वर्तमान की साधना है। हम देखते हैं, शरीर में होने वाले परिवर्तनों का अनुभव करते हैं। यह जान लेते हैं कि वर्तमान में कौन-सा पर्याय घटित हो रहा है। क्या परिवर्तन और परिणमन घटित हो रहा है । जानने के साथ-साथ परिणमन और परिवर्तन भी होता है । लगता है कि भार मिट रहा है, शरीर हल्का हो रहा है। व्यक्ति ध्यान करने बैठता है तो शरीर भारी-भारी लगता है, उठता है तो हल्का हो जाता है। ध्यान करने बैठता है तो कभी-कभी
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