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________________ २४० अप्पाणं सरणं गच्छामि रहस्य को जान लेने के बाद साधक का रास्ता बहुत सीधा हो जाता है। जो साधक व्यवहार स्वभाव और चरित्र को बदलना चाहता है उसके लिए बहुत आवश्यक है कि वह उन चैतन्य केन्द्रों पर चित्त की यात्रा अधिक से अधिक करे जो चैतन्य केन्द्र हमारे स्वभाव, आचरण का नियन्त्रण कर रहे हैं। विशुद्धि-केन्द्र, ज्योति केन्द्र, दर्शन-केन्द्र, ज्ञान केन्द्र, शांति केन्द्र-ये पांच केन्द्र हमारे व्यवहार को पवित्र बनाते हैं, आचरण को पवित्र बनाते हैं और असत् आचरण पर, असत् व्यवहार पर नियन्त्रण करते हैं। जब तक इनकी आराधना नहीं होती, जब तक इनकी साधना नहीं होती, हमारा ध्यान इन पर केन्द्रित नहीं होता, इन्हें हम सक्रिय नहीं बना लेते, तब तक ये हमारा पूरा सहयोग नहीं करते। साधना का बहुत बड़ा रहस्य है कि हम तैजस-केन्द्र, स्वास्थ्य केन्द्र, शक्ति-केन्द्र का परिष्कार करें, आनन्द-केन्द्र से ज्ञान केन्द्र तक के चैतन्य केन्द्रों का सहयोग उपलब्ध करें। चित्त की यात्रा हमारी ऊपर की ओर हो, नीचे की ओर न हो। यह इतना बड़ा रहस्य है कि इसे जान लेने पर समूचा व्यक्तित्व बदल सकता है। प्रेक्षा है प्राण का संतुलन आदमी बीमार क्यों होता है? एक डॉक्टर कहेगा कि जर्स के कारण बीमार होता है, रोग-निरोधक शक्ति कम हो जाती है इसलिए बीमार होता है। एक आयुर्वेद का चिकित्सक कहेगा कि वात, पित्त और कफ की गड़बड़ी से बीमार होता है। किन्तु अध्यात्म की साधना करने वाला व्यक्ति इन दोनों बातों को स्वीकार नहीं करेगा। उसका उत्तर होगा कि प्राण-शक्ति में असंतुलन होता है इसलिए मनुष्य बीमार होता है। यदि प्राण-शक्ति का संतुलन बना रहे तो आदमी बीमार नहीं हो सकता। असंतुलन ही मनुष्य को बीमार बना रहा है। कहीं प्राण ज्यादा हो गया और कहीं कम हो गया। संतुलन बिगड़ गया। पूरे शरीर में प्राणधारा का एक संतुलन होना चाहिए। शरीर में विद्युत् का प्रवाह संतुलित रहना चाहिए। वह संतुलन बिगड़ा और आदमी बीमार बन गया। दर्द होता है, शरीर निकम्मा हो जाता है, काम करने की शक्ति किसी अवयव की कम हो जाती है। इसलिए होती है कि प्राण का संतुलन बिगड़ जाता है। प्रेक्षा करने वाला पूरे शरीर को देखता है। सिर से पैर तक देखता है। देखने का मतलब है, जहां चित्त जाता है वहां प्राण जाता है। चित्त और प्राण दोनों साथ-साथ जाते हैं। चित्त जहां केन्द्रित हुआ, प्राण को उसके साथ जाना ही होगा। प्राण चित्त का अनुचारी है, अनुगामी है। पूरे शरीर में चित्त की यात्रा होती है। इसका अर्थ है कि पूरे शरीर में प्राण की यात्रा होती है। जो संतुलन बिगड़ा होता है, वह संतुलन फिर ठीक हो जाता है। पूरा शरीर प्राण से भर जाता है। शरीर-प्रेक्षा का पहला उद्देश्य है-प्राण का संतुलन। उसकी निष्पति है प्राण का संतुलन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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