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२३२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
मन अपने आप समाप्त हो जाता है। मन चलता है शब्द के सहारे, शब्द चलता है प्राणवायु के सहारे और प्राणवायु चलता है श्वास के सहारे। जब प्राणवायु शांत होता है तो श्वास शांत होता है, श्वास शांत होता है तो शब्द शांत होता है। श्वास की साधना करने वाला व्यक्ति शब्दातीत, कल्पनातीत और विचारातीत स्थिति में चला जाता है।
प्राणवायु को समझना और उसे शांत करना समाधि के लिए पहला प्रस्थान है और उस पहले प्रस्थान की यात्रा करने के लिए श्वास को शांत करना दूसरा प्रस्थान है। जैसे-जैसे ये तीनों प्रस्थान स्पष्ट होते जाएंगे, वैसे-वैसे समाधि की यात्रा निर्विघ्न होती जाएगी।
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