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________________ २४. चित्त शुद्धि और श्वास - प्रेक्षा साधना का सारा उपक्रम दर्शन और ज्ञान की शक्ति को विकसित करने के लिए है । समाधि का एक ही उद्देश्य है कि हम अपनी सहज उपलब्ध दर्शन और ज्ञान की शक्ति का उपयोग कर सकें, सत्य को देख सकें, सत्य को जान सकें । प्रश्न है कि दर्शन और ज्ञान की शक्ति का विकास कैसे हो ? इनका उत्तर भी सीधा है । जब चित्त की निर्मलता होती है तब दर्शन और ज्ञान की शक्ति बढ़ती है । चित्त की जितनी निर्मलता, उतनी दर्शन और ज्ञान की क्षमता । साधना की विभिन्न प्रक्रियाएं चित्त-शुद्धि की प्रक्रियाएं हैं । चित्त निर्मल बने, उस पर जो मैल जमा है, जो कल्मष जमा है वह हट जाए और चित्त कांच की भांति निर्मल बन जाए । चित्त-शुद्धि के लिए हम अनेक उपक्रम करते हैं, अनेक ध्येयों का आलंबन लेते हैं । ध्येय एक ही नहीं है, अनेक हैं, कहना चाहिएध्येय अनन्त हैं । प्रत्येक पदार्थ ध्येय बन सकता है । पदार्थ का प्रत्येक पर्याय ध्येय बन सकता है । जितने द्रव्य हैं और जितने उनके पर्याय हैं वे सब ध्येय बन सकते हैं। ध्यान करने वाला एक परमाणु को ध्येय बनाकर आत्मा को उपलब्ध हो जाता है। ध्यान करने वाला एक पर्वत को ध्येय बनाकर आत्मा को उपलब्ध हो जाता दर्शन और ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है । पदार्थ कोई अच्छा या बुरा, शुचि या अशुचि नहीं होता । ध्यान के लिए पदार्थ पदार्थमात्र है, केवल पदार्थ है, और कुछ नहीं । ध्यान करने वाले व्यक्ति के लिए वस्तु वस्तु है, अच्छी-बुरी या शुचि - अशुचि नहीं होती । वस्तु ध्येय बनती है, केवल ध्येय | यह ध्येय साधक को सिद्धि तक पहुंचा देता है। ध्यान करने वाला किसी ध्येय को हेय या उपादेय नहीं मानता। हेय वस्तु भी ध्यान का आलंबन बन सकती है। चंचलता : एक बाधा ध्यान या समाधि के जगत् में हेय-उपादेय, अच्छा-बुरा, शुचि-अशुचि जैसे शब्द नहीं हैं। उसके शब्दकोष में एक ही शब्द है - वस्तु-धर्म, वस्तु सत्य । न जाने कितने साधकों ने ऐसी-ऐसी वस्तुओं को ध्यान का आलंबन बनाया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे उस आलंबन से सिद्धि तक पहुंच गए। जिसकी आंख सचाई को देखने लग जाती है, जिसमें सत्य को देखने की क्षमता जाग जाती है, वह कलेवर या चमड़ी को नहीं देखता, छिलके को नहीं देखता, किन्तु यथार्थ को ही देखता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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