SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्त-शुद्धि और समाधि २२३ चिकित्सा की शरण नहीं लेनी है, न चंदन का लेप आवश्यक है, न और कोई ओषधि। इसकी एकमात्र चिकित्सा है-अकेला हो जाना। वे इसी चिन्तन में डूब गए। रात के बीतने के साथ-साथ उनकी बीमारी मिट गई। स्वस्थ हो गए। उन्होंने अपने संकल्प की घोषणा करते हुए कहा-अब मैं अकेला बनूंगा। अब मैं दो नहीं रह सकता। वे सचमुच अकेले हो गए। अकेला कौन? आदमी अकेला तब होता है जब ममकार और अहंकार का बन्धन टूट जाता है, जब आत्मा की सन्निधि प्राप्त हो जाती है। अकेले में दुःख नहीं होता। गुरु और शिष्य जा रहे थे। जंगल आ गया। गुरु एक वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यानलीन हो गए। शिष्य बैठा था। उसने देखा, एक शेर उधर ही आ रहा है। भयभीत होकर वह वृक्ष पर चढ़ गया। शेर आया। गुरु को सूंघा और चला गया । शिष्य पेड़ से उतरा। गुरु ने ध्यान पूरा किया और दोनों आगे चल पड़े। कुछ दूर गए ही थे कि गुरु को एक मच्छर ने काट डाला। गुरु ने उसे हटाया। कान को खुजलाया और बोले-कितना दर्द हो रहा है? शिष्य बोला-गुरुदेव! बात समझ में नहीं आ रही है। शेर आया, तब आप शान्त बैठे थे और एक छोटे से मच्छर के काटने से आप तिलमिला उठे। इसका कारण क्या है? गुरु ने कहा-जब शेर आया तब मैं अपनी आत्मा के साथ था, अपने प्रभु के साथ था और अब मैं तुम्हारे साथ हूं। इसका प्रतिपाद्य है कि जब कोई अपने आपके साथ नहीं होता, दूसरे के साथ होता है तब उसे कठिनाइयों का अनुभव होता है। जब वह अपने आपके साथ होता है तब कोई समस्या नहीं होती, कोई कठिनाई नहीं होती। सारी समस्याओं का मूल है-द्वैत। प्रेक्षा-ध्यान है विचय-ध्यान सत्य की महान् उपलब्धि का एक महान् सूत्र है विचय-ध्यान। इसका ही अपर नाम है-प्रेक्षा-ध्यान। प्रेक्षा विचय-ध्यान है। इसमें विचारों का योग होता है। हम विचारों को देखते हैं, किन्तु यह न मानें कि बस यही अन्तिम है। यह आदि-बिन्दु है जो विचारों के आस-पास तैरता रहता है। विचारों के पानी में वह तैरता बिन्दु है, गिरता है और फैल जाता है। पूरे विचार पर फैल जाता है। विचारों से सर्वथा मुक्त होकर हम प्रेक्षा का अभ्यास नहीं कर सकते। जब हमें प्रेक्षा की अगली मंजिल उपलब्ध होगी, केवल देखने की और केवल जानने की, तब उसका स्वरूप बदल जाएगा। विचार नीचे रह जाएंगे और प्रेक्षा ऊपर आ जाएगी। किन्तु प्रारंभिक अवस्था में जहां तक प्रेक्षा एक आलंबन है वहां तक विचार और प्रेक्षा पानी में तैरता बिन्दु है जो पूरे विचार पर फैल जाता है, पूरे पानी में फैल जाता है। इससे यह भ्रम न पाल लिया जाए कि दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy