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२२२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
को खोजने का प्रश्न है, यथार्थ को और वस्तु-स्वभाव को जानने का प्रश्न है वहां विज्ञान और ध्यान में कोई अन्तर नहीं हो सकता। जो वैज्ञानिक ध्यान का अभ्यास नहीं करता, वह नये तथ्यों की खोज नहीं कर सकता। जो साधक ध्यान का प्रयोग नहीं करता, वह वस्तुओं की अज्ञात पर्यायों को नहीं जान सकता। नये पर्यायों को जानने के लिए विचय-ध्यान अत्यन्त उपयोगी है। विचय और विकल्प ध्यान कब?
वस्तु-स्वभाव को जान लेने के पश्चात् जब उसके साथ हमारी रागात्मक और द्वेषात्मक धारा जुड़ती है, अहंकार और ममकार की भावना जुड़ती है, प्रियता और अप्रियता का संवेदन जुड़ता है तब वह ज्ञान ध्यान नहीं रहता, वह विचार और विकल्प ध्यान नहीं रहता, और कुछ बन जाता है। यदि वह ध्यान बना रहता है तो उसकी संज्ञा होगी-आर्तध्यान, रौद्रध्यान। चेतना को उज्ज्वल बनाने वाला, चेतना को उपाधिमुक्त करने वाला ध्यान नहीं रहता। चित्त-शुद्धि के लिए वही विचय और विकल्प ध्यान बनता है, जिसके साथ किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं है; जिसके साथ न राग है, न द्वेष है, न ममकार है, न अहंकार है और न प्रियता-अप्रियता का संवेदन है।
प्रत्येक वस्तु ध्यान का आलंबन बन सकती है। प्रत्येक सत्य ध्यान का आलंबन बन सकता है। यदि मैं अकेला होता
मिथिला के नरेश नमि राजर्षि अस्वस्थ हो गए। वे दाहज्वर से पीड़ित थे। शरीर में भयंकर दाह । उनकी पत्नियां चन्दन का लेप तैयार कर रही थीं। वे चन्दन घिसने लगीं। चूड़ियों की आवाज आ रही थी। वे शब्द नमि राजर्षि के कानों में चुभ रहे थे। उन्होंने कहा-शब्द कहां से आ रहे हैं? बन्द करो। लोग दौड़े-दौड़े गए। रानियों से कहा। उन्होंने एक-एक चूड़ी हाथ में रखकर शेष चूड़ियां निकाल दीं। अब शब्द बंद हो गया। कुछ ही समय बाद नमि ने पूछा-'जो पहले शब्द हो रहा था, क्या वह बन्द हो गया?' "हां, महाराज! वह बंद हो गया है।' 'क्या चन्दन नहीं घिसा जा रहा है?' नमि ने पूछा। परिचारकों ने कहा-चन्दन घिसा जा रहा है, पर रानियों ने अपने हाथों में केवल एक-एक चूड़ी ही रखी है। जब एक ही चूड़ी होती है तब कोई शब्द नहीं होता। ध्वनि के लिए दो चाहिए। संघर्षण के लिए दो चाहिए। राजर्षि ने सुना। दो से संघर्षण, दो से शब्द-ये विचार घूमने लगे। वे सत्य की खोज में उतरे, विचय में चले गए। चेतना की गहराइयों में उतरे और उन्हें अनुभव हुआ कि जहां दो होते हैं वहां समस्याएं उभरती हैं, वहां झंझट खड़े होते हैं। एक में कोई समस्या नहीं होती, कोई झंझट नहीं होता। मेरी बीमारी दो के ही कारण है। अगर मैं अकेला होता तो यह मेरी बीमारी नहीं होती। अब मुझे इस बीमारी के लिए कोई दूसरी
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