SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्त-शुद्धि और समाधि २२१ से कहा-'मघजी! उत्तराध्ययन सूत्र का जितनी बार पारायण करता हूं, उतनी ही बार नये-नये रत्न प्राप्त होते हैं। आज भी यह बात मिली जो आज तक अज्ञात थी।' प्रत्येक अक्षर और शब्द के अनन्त पर्याय होते हैं। एक बार पढ़ने वाला एक पर्याय को जान सकता है, किन्तु जो उसका सतत अवगाहन करता रहता है वह धीरे-धीरे नये-नये पर्यायों से अवगत होता रहता है। मूल बात है ध्यान को केन्द्रित करने की। जो जिस विषय पर केन्द्रित होता है, वह उस विषय में निष्णात हो जाता है, उसके सारे पर्यायों या अधिकतम पर्यायों को जान जाता है। ध्यान को केन्द्रित करने का विषय आगम भी हो सकता है और शव या वृद्ध व्यक्ति भी हो सकता है। जिस वस्तु पर जितना ध्यान केन्द्रित होगा, जितना विचय होगा, उतने ही नये-नये पर्याय अभिव्यक्त होते जाएंगे। गीता पर कितनी व्याख्याएं और भाष्य लिखे गए। जिस व्यक्ति ने जितना ध्यान केन्द्रित किया, जितना विचय किया, उतना ही वह गहराई में उतरा और नये-नये अर्थ अभिव्यक्त हुए। सारे बौद्धिक संघर्षों का यही कारण है कि एक व्यक्ति एक पर्याय तक पहुंचता है, दूसरा दूसरी पर्याय तक और चौथा चौथी पर्याय तक। जो और अधिक गहरे में जाता है उसे और अधिक पर्याय ज्ञात हो जाते हैं और तब वह और नये-नये अर्थ अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार अर्थ में बहुत भिन्नता आ जाती है। यह भिन्नता संघर्ष पैदा करती है। इस भिन्नता में भी एक अभिन्न अंश है। उस वस्तु के विषय में जितने विचार हैं वे सब अपनी-अपनी भूमिका में सत्य हैं। शब्द के पर्याय अनन्त हैं तो अर्थ भी अनन्त हो सकते हैं। जो व्यक्ति शब्द के जिस पर्याय को पकड़ पाता है, उसे ही वह अभिव्यक्ति देता है। उसका कथन असत्य नहीं हो सकता। उसकी पहुंच उस पर्याय तक ही थी, इसलिए उसने वह अर्थ किया। लुकमान पौधों के पास जाते, उन पर एकाग्र होते और उनके गुणधर्मों को जान जाते। यह विचय की प्रक्रिया है। इससे अज्ञात पर्याय ज्ञात होते हैं और ज्ञात पर्याय और अधिक स्पष्ट होते हैं। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। विज्ञान और ध्यान में द्वैत नहीं विज्ञान और ध्यान की एक ही प्रक्रिया है। जहां तक सत्य की खोज का प्रश्न है वहां तक दोनों में कोई अन्तर नहीं है। विज्ञान स्वयं ध्यान की प्रक्रिया है और ध्यान स्वयं विज्ञान की प्रक्रिया है। कोई अन्तर नहीं है। अन्तर होता है उपयोगिता के क्षेत्र में। अन्तर आता है प्रयोग-काल में, प्रयोग-अवस्था में। चाकू एक पदार्थ है। उसमें काटने की शक्ति है। उससे साग भी काटा जा सकता है, किसी पर प्रहार भी किया जा सकता है और ऑपरेशन भी किया जा सकता है। शक्ति शक्ति होती है। उसका उपयोग भिन्न-भिन्न हो जाता है। जहां शक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy